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संत सेवा और राजनीति

politics-saintsसर्वप्रथम हमें राजनीति की परिभाषा से अवगत होना चाहिये। आजकल हर किसी की जुवान पर राजनीति की अलग-अलग स्वनिर्मित, तथ्यतिहीन परिभाषायें है । कोई राजनीति को सबसे गंदा विषय बताता हैं तो कोई राजनीति को सर्वोत्तम व्यवसाय। यहाँ तक कि कुछ लोग तो राजनीति में न जाने की बिन मांगी सलाह भी दे देते है और अत्यन्त मानसिक पीड़ा तो तब होती थी जब अन्ना हजारे जैसे गांधीवादी भी राजनीति को कीचड़ बता कर इससे दूर रहने की सलाह देते थे।

अब तक की सर्वमान्य परिभाषा जो राजनीति की दी गई है वो अन्ना हजारे के आदर्श महात्मा गांधी के शब्दों में इस प्रकार है कि ‘‘राजनीति समाज व राष्ट्र सेवा का सवोत्तम माध्यम है’’। मेरे विचार से अगर राजनीति राष्ट्र सेवा के अतिरिक्त किसी और कार्य की प्रेरणा देती है तो वो राजनीति हो ही नहीं सकती है, क्यों कि राजनीति ही वो माध्यम है जिसके द्वारा देश की मूल समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।

क्या ये परिभाषा उचित मालूम पड़ती है, क्यों कि किसी भी देश की मूल आवश्यकता (शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, सड़क, बिजली, पानी इत्यादि।) की पूर्ति राजनीति के माध्यम से केन्द्रीय सत्ता तक पहुच कर ही किया जा सकता है। क्यों कि व्यक्तिगत और गैरसरकारी संगठनो के स्तर पर इन राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जा सकती है।

अगर राजनीति सेवा मार्ग है तो सेवा आसक्ति (स्वार्थो से ऊपर उठ कर ही किया जा सकता है) क्यों कि कोई भी स्वर्थी व्यक्ति कभी किसी विशेषण की सेवा नहीं कर सकता है तो वो राष्ट्र सेवा कैसे कर सकता है? अब संत व फकीरों की बात करते है । संत की परिभाषा है, जो स्वार्थो से ऊपर उठ कर विचार और कार्य करे और संतो व फकीरों का धर्म है सेवा भाव ।(मै वस्त्रो वाले संतो व फकीरों की बात नहीं कर रहा हूँ ) इस प्रकार हम पाते है कि संतो व फकीरो का कार्य है सेवा करना। व राजनीति सेवा मार्ग है तो क्या यह स्वीकार किया जा सकता है कि संत व फकीर राजनीति में आकर वेहतर ढ़ग से समाज व राष्ट्र सेवा कर सकते है । क्यों कि संत व फकीर स्वार्थ विहीन होते हैं । ऐसा देखा गया है कि स्वार्थी लोग राजनीति में आकर समाज सेवा करने की जगह भष्ट्राचार व देश लूटने के लिये लालायित रहते है।

तो क्यों न हम संत स्वभाव के व्यक्तियो से राजनीति में आने का आग्रह करे, ताकि वे स्वार्थो से ऊपर उठ कर समाज सेवा व राष्ट्र निर्माण कर सकें।

अब आप लोग विचार करे कि राजनीति में सेवा करने वाले स्वार्थहीन लोगों को आना चाहिये या चारा घोटाला करने वाले, या (एन आर एच एम) घोटाला करने की आजादी देने वालो, टूजी स्पेक्टन्न्म घोटालो को मौन सहमति देने वालों को, राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दो जैसे बोफोर्स घोटाले में दलाली खाने वालो या साम्प्रदायिक दंगे कराने वालो को आना चाहिये । क्यों कि जो राष्ट्र हित में स्वार्थो का त्याग नहीं कर सकता है वो आत्मत्याग व वलिदान क्या कर सकता है । इसका अंदाजा तो हम सभी सहज रूप से लगा सकते हैं। हमारे युवा साथी संकीर्ण स्वार्थो का त्याग कर राष्ट्र सेवा का सर्वोत्तम माध्यम यानि राजनीति में आकर राष्ट्रसेवा करें। देश की राजनीति में निस्वार्थ युवा शक्ति व संतो और सुफियाना फकीरों का अत्यन्त अकाल है।