पोशाक राशि हो या पुस्तक, छात्रव्रीति हो या मध्यान भेजन योजना सभी कार्यक्रमों में घपलेबाजी का बोलबाला है। किसी भी विद्यालय में मैनू के मुताबिक मध्यान भेाजन नहीं बनता। सरकार के मैनू के अनुसार सप्ताह में मीठाचावल, अंडाकढी, पनीर ,राजमा तथा पत्तीदार सब्जियां देने का प्रावधान है लेकिन विद्यालयों में खिचड़ी भी बन गई तो वही बहुत है। खिचड़ी भी ऐसी जिसे बच्चे खाने से परहेज करते हैं। आए दिन खिचडी से किडे़ मिलना किसी न किसी विद्यालय कि आम बात हो गई है।
अभिभावकों कि माने तो खिचड़ी में भी घटिया चावल मात्रा से कम दाल रहता है बाकी पैसे का हिसाब मैनू के अनुरूप ही उठता है जिसे शिक्षक ,शिक्षा समिती और पदाधिकारी आपस में मिल बांट कर खा जाते हैं। इनकी हिस्सेदारी पद के हिसाब से तय होती है। यही कारण है कि शिक्षा समिति के चुनाव में जोर अजमाइस होती है, सबसे दुखद बात तो यह है कि जिस शिक्षक को राष्ट्र निर्माता जैसी उपाधि दी गई हो वे छात्रों कि हकमारी करने में जरा भी शर्मिंदगी महसूस नहीं करते ।