नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत के ऐसे अकेले स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश के अंदर मोर्चा खोला और भारत को आजादी दिलाने के लिए पूरी दुनिया का समर्थन मांग लाए थे। हालांकि, आधिकारिक पुष्टियों के मुताबिक, नेताजी का निधन एक प्लेन क्रेश में हुआ था, लेकिन असल सच्चाई तो पूरी दुनिया से छिपाकर रखी गई।
कुछ रिपोर्टस् की मानें तो नेताजी का निधन नहीं हुआ था, बल्कि दुश्मन दुनिया से बचे रहने के लिए उन्होंने अपनी पहचान छिपाई और गुमनामी बाबा बनकर अयोध्या में रहने के लिए चले आए। नेताजी उर्फ गुमनामी बाबा 1970 के दशक में चीन और तिब्बत के रास्ते भारत में आए और फैजाबाद में भगवन जी की पहचान के साथ रहने लगे। वे काफी वर्षों तक एक ही स्थान पर नहीं रहे।
शुरुआती दिनों में नेताजी अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार और बस्ती में कुछ दिन गुजारने के बाद पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे। हालांकि, उनका आखिरी ठिकाना अयोध्या की सब्जी मंडी के बीचोंबीच स्थित लखनऊवा हाता था, जहां उन्होंने अपने जीवन के कुछ पल बेहद की शांति और गुमनामी से जिए। ये तो एक दम पक्का था कि बहुत ही लोग उनके बारे में जानते थे कि वे असल में हैं कौन।
खबरों की मानें तो यहां उनकी सेवा करने के लिए सरस्वती देवी नामक महिला रहती थीं, जिन्हें जगदम्बे कहकर बुलाया जाता था। बताया जाता है कि ये महिला नेपाल के राजघराने से जुड़ी थी, लेकिन पढ़ी-लिखी नहीं थी। वहां उनसे मिलने बहुत ही कम लोग आते थे और बाबा के करीबी कहे जाेन वाले लोगों का उनसे मिलना बाधित था। उनसे मिलने वाले लोग उन्हें नई करेंसी, अखबार, सिगरेट और शराब देकर जाते थे, क्या एक संत के पास ऐसी चीजों का होना आम बात थी?
गुमनामी बाबा का राज
जाहिर है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गुमनामी बाबा के बीच में कई समानताएं पाई गई, जिसके चलते कयास तेज होने लगे कि गुमनामी बाबा यानी भगवन जी ही नेताजी हैं। इसका खुलासा सिर्फ शक्ल के आधार पर नहीं, बल्कि गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनके पास से बरामद सामानों उन अटकलों को तेज कर दिया। इन अटकलों ने सच्चाई की आग उस समय पकड़ी जब नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से सामान को देखने पहुंची और सारा सामान देखती ही बिलखने लगीं। उन्होंने सभी को बताया कि ये सारा सामान उनके चाचा का ही है।
आपको बता दें कि गुमनामी बाबा उर्फ नेताजी के निधन के बाद वहां से 32 संदूक बरामद किए गए, जिनमें से 3 बक्से खोले जा चुके हैं। इन बक्सों में से टूथब्रश, गोल फ्रेम वाला चश्मा, गुमनामी बाबा की घड़ी, बेल्जियन टाइपराइटर, आजादी के पहले के अखबार, आजादी के बाद के अखबार, गुमनामी बाबा की टिप्पणियों की कतरनें, कुछ अंतरराष्ट्रीय किताबें, तोहफे में मिली किताबें, इटली और जर्मनी में बने सिगार, नेताजी के परिवार से जुड़ी तस्वीरें हैं औऱ कई अन्य सामान थे, जो नेताजी के सामान से बेहद मिलते जुलते थे।
इसके अलावा फैजाबाद में रहने वाले कई लोगों ने बताया कि गुमनामी बाबा फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन बोलते थे, लेकिन किसी भारतीय संत को ये भाषाओं का आना आश्चर्यजनक है। कुछ लोगों ने बताया कि अकसर उनके भक्त 23 सिंतबर(नेताजी का जन्मदिवस) और दुर्गा पूजा के दिन उनसे वहां मिलने आते थे, जो रात के अंधेरे में गाडियों से उतरकर सुबह होने से पहले ही निकल जाते थे। उन्होंने बताया कि बाबा बहुत ही कम लोगों से मिला करते थे।
इतना ही नहीं, सबसे गहरा रहस्य उनके अंतिम संस्कार से जुडा था, जिसमें बताया गया कि बाबा का अंतिम संस्कार सैन्य संरक्षित क्षेत्र में किया गया और उनके निधन के बाद उस स्थान पर प्रशासनिक अधिकारी और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट भी मौजूद रही। वहीं, उनके निधन के बाद उस स्थान को आम जनता के अंतिम संस्कार के लिए बंद कर दिया गया। इसी बीच जब गुमनामी बाबा के निधन के 2 दिन बाद जब अखबार में नेताजी के निधन की खबर गुमनामी बाबा के साथ छपी तो प्रशासन भी इस पर चुप्पी सीधे रहा। वहीं जब प्लेन क्रैश के बाद नेताजी के निधन की खबर छापी गई तो लोगों ने इसे सही मानने से इंकार कर दिया था।
इसके अलावा, कुछ लोगों ने उन दिनों की रिपोर्टस् में बताया कि बाबा के निधन के बाद उनके चेहरे को तेजाब डालकर खराब कर दिया गया, ताकि कोई उनका चेहरा ना देख सके। इससे उनके आसपास रहने वाले शिष्य बेहद नाराज हुए और उनके विरोधाभास उत्पन्न हुआ। लेकिन गुमनामी बाबा के अंतिम संस्कार के बाद ही नेताजी के निधन से जुडे कयासों पर भी विराम लग गया। क्या सिर्फ एक संत के निधन के बाद ऐसा होना लाजमी है।