नई दिल्ली : कहते है जात –पात सब जिन्दा लोगो के बीच की ही लड़ाई है और मरने के बाद तो सभी एक हो जाते हैं मौत न किसी आम आदमी को बख्शती है और न किसी खास को । हालांकि हमारे समाज ने मौत के बाद भी स्पेशल स्टेटस को बरकरार रखने की पूरी कोशिश की है। वहां आज भी जातियों के हिसाब से श्मशान के हिस्से बंटे हुए हैं।
बता दे कि राजस्थान के उदयपुर में है ऐसा प्रचलन है कि राजस्थान के अशोकनगर श्मशान का एक बड़ा हिस्सा काफी साफ सुथरा है। खूबसूरत टाइलें लगी हैं। राज्य के कुछ बड़े नेताओं के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों को यहां समाधियां हैं। इस मसले पर इतिहास की प्रोफेसर मीना गौड़ कहती हैं, अमर सिंह प्रथम (1559-1620) के दौरान आयड़ के महासतिया में राज परिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के साक्ष्य हैं। यह राज परिवार के लिए रिजर्व होता है। हिंदुओं में अन्य जातियों के लिए कोई आवंटन तो नहीं था लेकिन परस्पर समझ, सहमति और सुविधा के हिसाब से यह व्यवस्था आगे बढ़ती गई और आज तक कायम है।
यहाँ अलग-अलग जातियों के अलग-अलग श्मशान हैं। यहाँ के श्मशान में विभिन्न जातियों के अपने-अपने चबूतरे हैं। इनमें ब्राम्हण गौड़ समाज, जाट, सुथार, दाधीच, क्षत्रिय, पालीवाल, अहीर, वसीठा, लोहार और धोबी शामिल हैं। सिर्फ उदयपुर को ही देखें तो यह आंकड़ा 55 तक है।
यहाँ ऐसा नहीं है कि यह व्यवस्था सिर्फ हिन्दुओं के भीतर ही व्याप्त है। मुस्लिमों में बिरादरी के हिसाब से कब्रिस्तान बंटे हुए हैं। शियाओं और सुन्नियों के अलग-अलग कब्रिस्तान हैं। इसके अलावा लोगों ने बिरादरी के आधार पर भी कब्रिस्तानों का बंटवारा कर रखा है।
कब्रिस्तान को वक्फ बोर्ड की संपत्ति माना जाता है। जैसे शाही कब्रिस्तान में जहां पठान, शेख, बादशाहों की फौज में रहे कौम और सैयद दफनाए जाते हैं तो वहीं आयड़ स्थित कब्रिस्तान में लोहार और छिपा जातियों को दफनाया जाता है। वहीं उदयपुर में बाहर से आकर बसे मुस्लिमों के लिए परदेशी कब्रिस्तान है।