दागी जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बनाए रखने के लिए लाया गया अध्यादेश सरकार के लिए नया नया सिर दर्द बन सकता है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा राष्ट्रपति से लेकर जनता तक सरकार को घेरने में जुट गई है। पार्टी नेता सुषमा स्वराज विरोध जताने गुरूवार को राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाएंगी। माकपा ने अध्यादेश का रास्ता अपनाने का विरोध किया ही है।
आम आदमी पार्टी ने भी एलान किया है कि वह इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगी। कांग्रेस के भीतर से ही वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह ने अध्यादेश लाने के विरोध में आवाज उठा दी हे। हालांकि, केंद्रीय सुचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने भाजपा के रवैये पर आपत्ति जताई है।
विधेयक को लेकर भले ही अधिकतर राजनीतिक दलों में सहमति हो, लेकिन आनन-फानन लाए गए अध्यादेश ने जहां भाजपा को हमलावर होने का मौका दे दिया है, वहीं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस तरह के विवादित मामलों में राजनीतिक दलों में सहमति कायम कर फैसला किया जाना चाहिए। उधर दिग्विजय के इतर कांग्रेस प्रवक्ता राज बब्बर कहा कि अध्यादेश संविधान की रक्षा के लिए लाया गया है।
पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने कहा, कांग्रेस ने अदालत में दोषी साबित हो चुके अपने सांसद रशीद मसूद और राजद नेता लालू प्रसाद को बचाने के लिउ यह अध्यादेश लाया है। सप्रीम कोर्ट फैसले में कहा था कि किसी भी दो साल या ज्यादा की सजा पा चुके सांसद या विधायक की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। वामपंथी पार्टी माकपा ने इस अध्यादेश की भावना को तो विरोध नहीं किया है, लेकिन अध्यादेश के जरिए इसे किए जाने को गलत बताया है।
उधर अध्यादेश पर राष्ट्रपति के दस्तखत होने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में वकील एमएल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने अध्यादेश लाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया है और मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए इस फैसले की पूरी प्रक्रिया ही रद् करने की मांग की है।
इसी के साथ वरिष्ट कानूनविद् प्रशांत भूषण ने भी अध्यादेश को असंवैधानिक बताया है। उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आम आदमी और चुने हुए प्रतिनिधियों में फर्क करना संविधान की भावना के खिलाफ है। अगर ऐसी सजा होने के बाद किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं रहता तो सांसद और विधायक की सदस्यता भी खत्म होनी चाहिए।