यह स्थिति तब है जब केंदीय सत्ता शहरों की झुग्गी बस्तियों को हटाने और वहां रह रहे लोगों को बेहतर माहौल में बसाने के एक बड़े कार्यक्रम से लैस है। केंद्र सरकार पिछले पांच सालों में जिस तरह झुग्गी बस्तियों के हटाने के लक्ष्य को एक तिहाई भी पूरा नहीं कर सकी है उसे सपना आधे-अधूरे मन से ही देखा गया था।
2009 में जब देश को झुग्गियों से मुक्त करने का अभियान शुरू किया गया था तब शहरों में करीब पचास हजार झुग्गी बस्तियां थीं, लेकिन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के नए आंकड़े यह बता रहे हैं कि सिर्फ 31 फीसदी झुग्गी बस्तियां कम हो पाई। इस संगठन के अनुसार अकेले देश के 12 राज्यों में 33 हजार से अधिक झुग्गी बस्तियां हैं और इनमें से आधे से अधिक अभी भी अवैध की श्रेणी में हैं।
इसका मतलब है कि इन झुग्गी बस्तियों की अभी तक सुधि ही नहीं ली गई है। शहरी इलाको को झुग्गी बस्तियों से मुक्त करने का अभियान जिस तरह चल रहा है उसे देखते हुए यह कहना कठिन है कि देश को ऐसी बस्तियों से मुक्ति मिल सकेगी। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शहरी इलाकों में तेजी से नई-नई झुग्गी बस्तियां बढ़ती जा रही हैं।
समस्या यह है कि जब से बस्तियां आकार ले रही होती हैं तब उनकी कोई परवाह नहीं करता और एक समय ऐसी स्थिति आती है कि राजनीतिक दल उन्हें संरक्षण देने के लिए आगे आ जाते हैं। इसके चलते उनका नियमितीकरण भी हो जाता है, लेकिन आवश्यक बंनियादी सुविधाएं मुश्किल से मुहैया हो पाती हैं।
इसका एक कारण सरकारी तंत्र की सुस्त चाल तो है ही, इन बस्तियों का बेतरतीब होना भी है। देश में एक बड़ी संख्या में ऐसी झुग्गी बस्तियां हैं जहां चाहकर भी सभी आवश्यक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना कठिन है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश की राजधानी है, जहां तमाम बस्तियों में अभी तक पेयजल के कनेक्शन तक नहीं हो सके हैं।
झुग्गी बस्तियों की बढ़ती संख्या का मूल कारण शहरी इलाकों में आवास की भारी कमी है। विडंबना यह है कि रोटी, कपड़ज्ञ और मकान की बाते करने वाले राजनीतिक दल आवास समस्या का समाधान करने के लिए तनिक भी गंभीर नजर नहीं आते। वर्तमान में जो शहर जितना बड़ा है, आम आदमी के लिए एक अदद आवास हासिल करना उतना ही मुश्किल है।
सच तो यह है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के ताजा आंकड़े ग्रामीण और शहरी इलाकों में लागों को आवश्यक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों की पोल ही खोल रहे हैं। इसमें संदेह है कि इन आंकड़ों के सामने आने के बाद हमारे नीति-नियंता इन सुविधाओं के मामले में अपनी जिम्मेदारी के प्रति सचेत होंगे और देश को झुग्गियों से मुक्त करने के अभियान को गति देने के लिए कमर कसेंगे।