नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान में मिले विशेष अधिकार अनुच्छेद 35-A पर होने वाली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने 8 हफ्ते के लिए टाल दी है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की विशेष बेंच इस मामले में सुनवाई करने वाली थी, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा करने वाले थे। इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर शामिल हैं।
बता दें कि कल ही जम्मू-कश्मीर के तीन अलगाववादी नेताओं ने धमकी दी थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 35A को रद्द करने का फैसला लिया तो घाटी में विद्रोह होगा। अलगाववादी नेताओं-सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक ने बकायदा कश्मीरियों से अनुरोध किया कि अगर कोर्ट कश्मीर के लोगों के हितों के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो वे लोग विद्रोह शुरू करें।
जानिए, क्या है अनुच्छेद 35A
‘प्रेंसीडेशियल आर्डर’ के जरिए 1954 में जोड़ा गया था। यह राज्य विधानमंडल को कानून बनाने की कुछ विशेष शक्तियां देता है। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे अथवा नहीं दे। अन्य राज्यों के लोगों को कश्मीर में जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी करने या विधानसभा चुनाव में वोट करने पर रोक है।
दरअसल इस कानून के खिलाफ दिल्ली स्थित एनजीओ ‘वी द सिटीजन’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इसे खत्म करने की अपील की थी। एनजीओ ने अपनी इस याचिका में कहा था कि अनुच्छेद 35A के कारण संविधान प्रदत्त नागरिकों के मूल अधिकार जम्मू-कश्मीर में छीन लिए गए हैं, लिहाजा राष्ट्रपति के आदेश से लागू इस धारा को केंद्र सरकार फौरन रद्द करे। वहीं अनुच्छेद 35A के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने इस याचिका पर अगस्त माह में सुनवाई करते हुए मामले को 6 हफ्ते के लिए टाल दिया था और कहा था कि बेंच अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की सैंविधानिकता की जांच करेगी और इसके तहत मिलने वाला स्पेशल स्टेटस का दर्जा का भी रिव्यू होगा।