सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढा, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की की खंडपीठ ने 218 कोयला खदानों के आवंटन की जांच पड़ताल की और कहा कि ‘राष्ट्रीय संपदा के अनुचित तरीके से वितरण की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता नहीं थी’ जिसका ‘खामियाजा लोकहित और जनहित को चुकाना पड़ा।’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘कोई भी राज्य सरकार या राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम वाणिज्यिक उपयोग के लिए कोयले का उत्खनन करने की पात्र नहीं हैं।’
कोर्ट ने साफ किया कि राष्ट्रीय संसाधन आवंटन संदर्भ की राय के अनुरूप अल्ट्रा मेगा विद्युत परियोजनाओं के लिए बिजली की न्यूनतम दर हेतु हुई प्रतिस्पर्धात्मक बोलियों के मामले में कोयला खदानों को रद्द करने के लिए उसके समक्ष कोई याचिका दायर नहीं की गई है। लेकिन न्यायालय ने कहा कि ‘इसे ध्यान में रखते हुए यह निदेश दिया जाता है कि अल्ट्रा मेगा विद्युत परियोजनाओं के लिए आवंटित कोयला खदानों का इस्तेमाल सिर्फ इन्हीं परियोजनाओं के लिए होगा और इनके किसी भी तरह से वाणिज्यिक दोहन की अनुमति नहीं होगी।’
न्यायालय ने 163 पेज के फैसले में कहा कि जांच समिति और सरकारी व्यवस्था दोनों के ही माध्यम से हुए आवंटन मनमाने और गैरकानूनी हैं और सिर्फ इस सीमित मकसद के हेतु इसके अंजाम तय करने के लिए आगे सुनवाई की जरूरत है। इस संबंध में एक सितंबर को आगे सुनवाई होगी।