कोर्ट ने कहा कि नेता विपक्ष सदन की आवाज होता है, वह उन प्रतिनिधियों की आवाज होता है, जो सरकार से अलग होते हैं। संविधान बनाने वालों ने कभी सोचा नहीं होगा कि ऐसी स्थिति आएगी, इसलिए हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नेता प्रतिपक्ष के बिना लोकपाल का चयन करने के लिए बनी समिति प्रभावहीन होगी। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के उद्देश्य से लाए गए लोकपाल बिल के अनुसार लोकपाल चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष भी सदस्य होता है।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का इस मामले में कहना है कि मावलंकर नियम के अनुसार संसद में नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए 10 फीसदी सीटों पर जीत जरूरी है, इसलिए इस लोकपाल कमेटी में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस मामले पर चार हफ्ते में अपनी राय देने के लिए कहा है।
लोकपाल के चयन को लेकर नेता विपक्ष पद के मुद्दे पर सरकार का रुख भी सामने आ रहा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक लोकपाल कानून में यह प्रावधान है कि कमेटी में सदस्य की जगह खाली हो, तो भी फैसला लिया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक सरकार यह विचार सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेगी। सूत्रों के मुताबिक सरकार का मानना है कि नेता विपक्ष पर फैसला करना संसद और स्पीकर का अधिकार है। इस मामले से सरकार का कोई वास्ता नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पिछले काफी समय से कांग्रेस द्वारा उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिए जाने की मांग की जा रही थी, लेकिन इसी सप्ताह लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने इसे नामंजूर कर दिया। सुमित्रा महाजन ने अपने निर्णय के बारे में कहा, मैंने नियमों और परंपराओं का अध्ययन करने के बाद यह फैसला किया और इसके बारे में कांग्रेस को पत्र लिखकर बता दिया गया है। इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सुमित्रा को पत्र लिखकर लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने का आग्रह किया था। लोकसभा में कांग्रेस 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।