आरोपी को रिमांड में रखा गया है। लेकिन यह सिलसिला यही ख़तम नहीं होता। क्योंकि इतना काम तो पुलिस चाहे अनचाहे कर ही देती है। ऐसी दरिंदगी जिसके बारे में सोच कर रूह कांप जाती हो उसे बार – बार दोहराना ऐसा लगता है जैसे बलात्कार की शिकार लड़कियों के जख्मों को खुरेदने का काम करना।
फिर एक बार वही आवाम, वहीं भीड़, वही आवाज वही देश का सबसे बड़ा एम्स अस्पताल बस अलग है तो एक और बलात्कार और दरिंदगी की शिकार मासूम बच्ची। बच्ची जिसकी मासूमियत ने भी अभी उसका साथ नहीं छोड़ा था कि हैवानियत की हद पार करने वालों की दरिंदगी ने आज इस बच्ची पर ऐसा कहर ढ़ाया है कि बच्ची अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही है। बलात्कार को लेकर लोगों में दिखाई दे रहा गुस्सा, आक्रोश, खून में उबाल यह कोई नई बात तो नहीं है हां बलात्कार की नई-नई वारदातें जो इंसानिय को शर्मसार कर देने वाली होती हैं आये दिन जरूर सामने आ ही जाती हैं।
हालांकि दिल्ली और इसके साथ जुड़ी बालात्कार की वारदातों का सिलसिला थमता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। अब तो ऐसा लगता है कि बलात्कार और दिल्ली का चोली दामन का साथ हो गया है। सरकार के लाखों आश्वासनों के बावजूद भी उनके आश्वसन सिर्फ और सिर्फ आश्वासन बन कर ही रह गये हैं। समझ नहीं आता है कि सरकार का बलात्कार और बलात्कारियों पर दिया जाने वाला आश्वासन समाज में रहने वाली महिलाओं का हौसला बढ़ा रही है या बलात्कारियों का जो बिना किसी डर के अपनी दरिंदगी की हद पार करते जा रहे है।
अगर हम बलात्कार की बात करें तो दिल्ली हो या दिल्ली से बाहर बलात्कार की घटनाएं तो आए दिन हो रही हैं। लेकिन जब तक लोगों के रोंगटे खड़े कर देने वाली कोई बलात्कार की घटना सामने न आए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। क्योंकि रोज होने वाली बलात्कार की घटनाएं लोगों के लिए हो या प्रसाशन के लिए सिर्फ आम बलात्कार की घटना होती है, अब ऐसे साधारण बलात्कार जिसमें लड़की की सिर्फ इज्जत गई हो जान तो बच गई उसके शरीर पर कोई जख्म नहीं हो , जब तक वह एम्स जैसे बड़े अस्पताल में जिंदगी और मौत के बिच जूझ न रही हो, तब तो यह साधरण बलात्कार है इसके लिए न कोई भिड-सड़क पर उतरती है और न ही प्रसाशन के पास कोई आश्वासन होता है।
क्योंकि आज कल लोगों के लिए बलात्कार का सही मतलब तभी है जब बलात्कार की शिकार कोई भी बच्ची, लड़की या महिला जिंदगी और मौत से लड़ रही हो या उसमें उसकी जान चली जाए। क्योंकि इससे पहले दिल्ली में 16 दिसम्बर की रात 23 वर्षीय लड़की के साथ चलती बस में दिल दहला देने वाली सामूहिक बलात्कार की घटना जिसमें वह लड़की मौत को मात न दे पाई और अलविदा कह दिया दरिंदों से भरी इस दिल्ली को, और अब एक बार फिर उसी एम्स अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही 5 साल की मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी से लोंगों को यह लग रहा है कि हाँ यह बलात्कार है, जिसके लिए फिर एक बार सड़कों पर भीड़ उमड़ती दिखाई दे रही है और प्रसाशन के आश्वास की सुर्खियां न्यूज की हेडलाईन में सुनने को मिल ही जा रही है।
अब सवाल यह उठता है कि एक बार फिर सड़कों पर उतरी इस भिड़ की खून में गर्मी और उबाल कब तक रहेगी, कब तक सड़क पर इनके पैर टिके रहेंगे और कब तक जुबान से नारे निकलते रहेंगें? क्योंकि भारत में भीड़ का क्या मतलब है अब तक तो इस बात से सभी वाकिफ हो चुके हैं। यदि सिर्फ भीड़ से किसी समस्या का हल निकाल सकता तो 16 दिसम्बर को हुई सामूकिक बलात्कार की घटना के विरोघ में इंडिया गेट के सड़को पर उतरी भीड़ कम नहीं थी। हां यह बात अलग है कि यह भीड़ भी सिर्फ दिल्ली के लोगों के लिए है। क्योंकि दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना ही लोगों के लिए बलात्कार है वरना भारत के अन्य हिस्सों में रोज न जाने कितनी ही बलात्कार की घटनाओं को बिना किसी डर भय के अन्जाम दिया जा रहा है।
बलात्कार की घटना तो आए दिन हो रही है हाँ यदि यह घटना राजधानी दिल्ली में होती है तो यह बलात्कार है। अन्यथा अन्य जगह पर बलात्कार और दरिंदगी की शिकार महिलाएं और बच्चियां तो बस इसे अपनी नियती मान कर या तो चुप बैठ जाती है या अगर बलात्कार के बाद समाज के ताने नहीं सह पाती तो आत्महत्या कर लोगों का मुंह बन्द कर देती हैं। क्योंकि यह हमारा समाज ऐसा है जहां बलात्कार की शिकार लड़की को देखने का लोगों का नजरियां ऐसा हो जाता है जैसे कि उसने ही कोई पाप किया हो। अगर वह बलात्कारियों की दरिंदगी से बच जाती है तो हमारा यह समाज उसे जिते जी मरने को मजबूर कर देता है।
अगर हम बात करें दिल्ली में हुए इस 5 साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना हो, 16 दिसम्बर 2012 को हुए सामुहिक बलात्कार की घटना या ऐसी अन्य बलात्कार की घटनाएं जिसमें किसी औरत के जिस्म को लहू लुहान कर दिया जाए तो क्या इसे सिर्फ बलात्कार कहना ठीक होगा। दरिंदो की ऐसी दरिंदगी जो किसी के इंसान होने पर सवाल खड़ा कर दे? एक इंसान जो इंसान होकर किसी इंसान के साथ ऐसा कर दे की हैवानिय की सारी हद पार हो जाए। वारदात ऐसी की सिर्फ इसके बारे में सुन कर ही दिल दहल जाए रूह कांप उठे क्या यह सिर्फ बलात्कार है? इसे सिर्फ बलात्कार का नाम देकर हम अपने आप को ही नहीं उन दरिंदों को भी उनकी दरिंदगी से वंचित कर रहे है जो ऐसी हैवानियत को अंजाम दे रहे हैं। प्रशासन और कानून इन्हें सिर्फ बलात्कार का नाम देकर बलात्कार की धारएं लगाकर जेल में मुफ्त की रोटियां तोड़ने के लिए छोड़ देता है और फिर जेल कानून और कोट का सिलसिला चलात रहता है।
भारत जैसे देश में नारी को देवी कहना तो अब दूर की बात है। अब तो बस जब भी ऐसी कोई दरिंदगी की वारदात सामने आती है तो आत्मा दिल और दिमाग से यही आवाज निकलती है उन दरिंदों के लिए जो औरतों और मासूम बच्चियों के साथ यह हैवानित कर रहे है। नारी को अगर तुम नहीं कुछ समझ सकते तो उसे सिर्फ एक इंसान तो समझों। एक नारी की कोख से पैदा होने वाला नारी को रौंद डाले यह बात ऐसे दरिंदों के पैदा होने पर सवाल खड़े कर देती है।
कैसा है यह हमारा देश? कैसी है यह दरिंदों से भरी दिल्ली ? जहां अब बच्चियों की मासूमित छिन ली जाए। जहां लड़कियां घर में सुरक्षित नहीं है तो बाहर की बात तो दूर है। लड़कियां घर से बाहर नहीं निकल सकती? क्योंकि न जाने कब किस लड़की पर किस हैवान दरिंदे की नज़र पड़ जाए और वह उसका शिकार हो जाए। यहाँ अब ऐसा लगता है की औरतों की आबरू इन दरिंदो के हाथ की कटपुतली बन गयी हैं। किस काम की है भारत की सरकार? किसा काम का है कानून? किस काम की है पुलिस? हर बलात्कार सिर्फ सवालों को कटघरे में खड़ा नज़र आता है। आखिर यह क्यों और कब तक?