नई दिल्ली : दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने वाली याचिका मामले पर चुनाव आयोग ने बुधवार को सुप्रीमकोर्ट में कहा कि सजायाफ्ता जनप्रतिनिधयों के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक लगनी चाहिए। चुनाव आयोग ने कहा है कि वो ऐसे नेताओं पर रोक लगाने को तैयार है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मांगी है
आयोग ने अपनी यह मांग सरकार के सामने भी रखी है। चुनाव आयोग ने कहा कि वह इस बारे मे कानून संशोधित करने के लिए सरकार को भी लिख चुका है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस बात का प्रूफ मांगते हुए कहा कि कब लिखा है सरकार को, दिखाओ।
इस मामले को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने केन्द्र सरकार से कहा कि नेताओं के आपराधिक मामले के जल्द निपटारे के लिए स्पेश कोर्ट गठित की जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट गठित करने के बारे मे सरकार को छह सप्ताह मे योजना पेश करने का निर्देश दिया। सरकार योजना पर आने वाला खर्च भी बताएगी।
जब स्पेशल कोर्ट गठित करने के लिए ढांचागत संसाधन और पैसे की बात आई तो केन्द्र ने कहा कि स्पेशल कोर्ट गठित करना राज्य के क्षेत्राधिकार मे आता है। केन्द्र की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि वो एक तरफ स्पेशल कोर्ट गठन का समर्थन करके दूसरी तरफ राज्य की बात कहकर हाथ नही झाड़ सकता।
कोर्ट ने नेताओं के केस के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के अलावा सरकार से नेताओं के खिलाफ कुल लंबित केसों का ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वो 2014 मे नामांकन दाखिल करते समय 1581 लोगों द्वारा क्रिमिनल केस होने के दिए गए ब्योरे के केसों की डिटेल देनी होगी। कोर्ट ने कहा कि सरकार बताए कि 1581 मे से कितने केस निपटा दिए गए है और कितनों मे सजा हुई है।
इसके अलावा सरकार यह भी बताए कि उन मामलों का निपटारा कितने दिन मे हुआ।क्योंकि कोर्ट के 2015 के ऐसे मामले एक साल मे निपटाने के आदेश दिए थे। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से ये भी पूछा है कि 2014 से 2017 के बीच जनप्रत्निधियो के ख़िलाफ़ कितने नये केस दाखिल हुए और उनमें से कितने निपटे। सरकार कोर्ट को यह भी बताएगी कि कितने मे सजा हुई। कोर्ट 13 दिसंबर को मामले पर फिर सुनवाई करेगा।
तो वहीं केन्द्र सरकार ने कोर्ट मे कहा कि वह नेताओं के केसों के ट्रायल के लिए स्पेशल कोर्ट गठित करने और मामलों के जल्दी निपटारे का समर्थन करती है।
इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक की मांग वाली PIL पर सुनवाई के दौरान दाग़ी नेताओं के ख़िलाफ़ लंबित मामलों की जानकारी मांगी गयी थी। कोर्ट ने कहा था, क्या याचिकाकर्ता के पास इसका कोई ब्यौरा है।‘
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘आप सजा होने के बाद 6 साल की रोक पर बहस कर रहे हो लेकिन जब कोर्ट में केस 20-20 साल लंबित रहता है और 4टर्म बीत जाते है, इसके बाद छह साल की रोक का क्या मतलब।‘ कोर्ट ने कहा कि 20-20 साल केस लंबित रहते है जबकि कोर्ट का आदेश है कि ऐसे मामलों मे 6 महीने से ज़्यादा स्टे नही दिया जाएगा। कोर्ट ने आगे कहा कि यह बहस इसलिए है क्योंकि मुक़दमों मे जल्दी फैसला नहीं आता।