मेरे किसी मित्र ने इस शराब बंदी क़ानून पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, वर्तमान की बिहार सरकार अंग्रेजी सरकार की तरह “बगदादी कानून”बनाती है।
मुझे लगता है,मेरे मित्र की सरकार के बारे मे जो प्रतिक्रिया है, वह बहुत हद्द तक गलत नहीं होना चाहिये।
देखिये इससे होगा कुछ नहीं,क्योंकि पिने वाले तो रोज पीते ही हैं,और पीते भी रहेंगे। आपने कई बार खबरों में भी देखा जो थोड़े गरीब तबके के ही लोग जेल जा रहे हैं, असली को कौन पकड़ता है? वे तो फिक्स है, कीमत देकर पीते हैं।
अब देखिए “हत्या”,की सजा मौत है,तो हत्याएँ कभी बंद नहीं हुई,बल्कि आज भी औसतन पहले से अधिक ही हो रही है।
महिलाओं के साथ बलात्कार ,छेड़-छाड़ या उसे घूर कर देखने पर ,इस कानून का सदुपयोग और उसके तहत होने वाले मुक़दमे ,आज कितने फिसदी कोर्ट में सही आ रहें हैं, जिससे इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है,कि कानून के भय से किसी भी चीज पर कितना अंकुश लग सका है,बल्कि इसके बहाने भ्र्ष्टाचार में और वृदि ही हुई है।सरकार अपनी पुलिस को तरह तरह के कानून से लैस कर उसके माध्यम से उसी जनता का कितना भला करती है ? यह किसी से छिपा हुआ है क्या ? बिहार के प्रत्येक जिले में ये क्राईम मीटिंग क्या होती है, क्या हम पत्रकारों को नहीं मालूम हैं? और यह फीलगूड चैनेल निचे दरोगा से होते हुए शीर्ष तक बहुत सावधानी से चलता आया है, और चलेगा भी,क्योंकि इस चैनेल का गठन ही किसी बिहार सरकार ने ही किया था।
इस सरकार ने अपनी पुलिस को अब इस बार शराब बंदी कानून का नया बोनस दिया हैं।अब वर्तमान सरकार अपनी पुलिस को शराब बंदी के नाम पर एक और कानून का ठीकड़ा फोड़ने के लिये बिहार का एक ऐसा पॉवरफूल तोप बना रही है, कि, अब लोकतंत्र की प्रतिदिन हत्या होनी सहज होगी।
बिहार में अब लोकतंत्र वर्तमान सरकार द्वारा बनाए कानून के आगे अपने सर कलम करवाने पर ऐसी मजबूर होगी, जैसे आम शरीफ आदमी किसी बगदादी पुलिस के सामने खड़ा हो ।
आज हमारे नेतागण भ्र्ष्टाचार और घोटालों पर मौत की सजा या आजीवन सजा का कानून क्यों नहीं बनवा कर पास करवाते ? प्रस्ताव ही लाकर दिखाइए न,मुख्यमंत्री जी,तब देखता हूँ,कितने नेता ईमानदार हैं जो समर्थन कर पास करवाने की हिम्मत रखतें हैं।
अरे नेता तो वोट की वो गन्दी राजनीति करते हैं, जिसके लिये वो,कभी मजहबी टोपी पहन लेते,तो कभी कूड़ा साफ़ करने का ढोंग कर फोटो खिंचवाने के लिए हमारे आगे ही खड़े हो जाते हैं, और जबतक फोटो न आये ,वे हिलते तक नहीं।
यही नहीं,अगर मुख्यमंत्री जी का विरोध कोई उसकी जनसभा में करने की जुर्रत करे,तो अपनी करतूतों का भय भी उन्हें इतना है कि, उसके सभा स्थल तक न पहुँचने के लिए अपनी सारी पुलिस ताकत के द्वारा जगह जगह रोकवा कर पिटवाने में भी कोई कसर नही छोड़ते ।ये है हमारे देश का लोकतंत्र। और अगर गुस्सा आ गया तो,फिर भूल ही जातें हैं कि, वे लोकतंत्र के द्वारा चुने गए कोई सेवक भी हैं,बल्कि उस वक्त वह राजतंत्र के महाराजा बन कर भाषण मंच से ही अहंकार के अंधकार में डूब,उसके नौकरी ही खा जाने की धमकी देने से भी पीछे नहीं चूकते।
और हाँ,इनके अधिकारी,और कर्मचारी भले ही भ्र्ष्टाचार जैसे कुकृत्य में जेल चलें जाएं मगर ,बिजली के सरकारी बिल पर अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार करने पर ,होगी जेल ,का कोई जिक्र नहीं करते,
बल्कि जिस आम जनता के द्वारा वे चुने जाते है,उनपर इनके संदेह का निशाना ज्यादा होता है……
तभी बिहार सरकार के बिजली बिल पर लिखा होता हैं,
“बिजली चोरी करते पकडे जाने पर जाओगे जेल,लगेगा जुर्माना”
अब गौरतलब यह है,कि, वहां सरकार यह कठोर कथन अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को भी इंगित कर उनके लिए भी यह कथन क्यों नहीं लिखा ? आखीर बिहार सरकार को किस संविधान ने सिर्फ आम जनता पर ही बिजली चोर होने का संदेह करने का अधिकार दिया ? जबकि विद्युत विभाग में 90% अधिकारी और कर्मचारी गण भ्रष्ट हैं,जो बिजली क़ानून का भय दिखाकर अवैध रकम की उगाही करते हैं।
इस प्रकार बिहार में कानून को शख्त बनाने का उद्देश्य राज्य में प्रसाशनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना नहीं है, बल्कि,नेता अपने स्वार्थ सिद्धि पूरा करने के लिये,अपने कार्य प्रणाली तंत्र के माध्यम से आम जनता को मतस्य जाल में फंसाकर अपना मक़सद पूरा करना प्रतीत होता नजर आ रहा हैं।लोकतंत्र में आम जनमानस को ही ध्यान में रख कर उन्हें वोट करने और चुनाव में प्रतिभागी होने का अधिकार है, मगर ये क्या मुख्यमंत्री जी,एक तरफ बिहार में पुलिस से लेकर हर सरकारी विभाग में खुले आम भ्र्ष्टाचार की गंगोत्री बह रही हो,और जब आपके द्वारा जबरिया कानून में ही जब शराब रखने के नाम मात्र संदेह पर भी जब पुलिस को ग्रिफ्तार करने या बिना वारंट के घर घुसने का अधिकार मिल जाये तो जरा सोचिए कि,ये ईमानदार पुलिस वाले कितने शरीफों के ईज्जत को आबाद करेंगे। वाह रे लोकतंत्र।