जानिये, क्यों एक अफसर बेटे ने 82 साल के बूढ़े बाप को फुटपाथ पर किताब बेचने को किया मजबूर

“आज ऊँगली थाम के तेरी ,तुझे मै चलना सिखलाऊँ ,कल हाथ पकड़ना मेरा जब मै बुढा हो जाऊँ, तू मिला तो मैंने पाया जीने का नया सहारा | मेरा नाम करेगा रौशन जग में मेरा राज दुलारा”…जब बेटे ने घर में जन्म लिया तो मानों पूरे परिवार में खुशिहाली छा गई। महिलाओं ने मंगल गीत गाए। पिता ने मिठाईयां बांटी। दादा-दादी ने पोते में अपने आप को निहार खुश हो लिए, लेकिन क्या पता था कि यही बेटा बड़ा होकर एक दिन अधिकारी बनेगा और अपने वृद्ध पिता को धक्के मारकर घर से निकाल देगा। जिस पिता की मेहनत की बदौलत ऑफिसर बनेगा उसी पिता को एक बोझ समझ घर से निकाल देगा और पिता के जान का दुश्मन बन जाएगा।

82 साल के पिता संतराज की माने तो उनकी गलती बस इतनी है कि वे अब पैसा नहीं कमा सकते हैं। घर का बोझ नहीं उठा सकते हैं। शायद इसलिए बेटे को लगा कि पिताजी को साथ रखना फायदे का सौदा नहीं है। फिर क्या था एक दिन उसने धक्के मारकर उन्हें घर से निकाल दिया। इस उम्र में अब वे कहां जाए। क्या करें। किसके आगे हाथ पसारें। कुछ समझ नहीं आ रहा था। जब अपनों ने ठुकरा दिया तो दूसरा कौन सहारा बनेगा। पटना के पुनपुन का रहने वाला यह बुजुर्ग इस कदर टूट चुका है कि अब रिश्तों से इसका भरोसा भी उठ चुका है। बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी। भीख मांगने के बदले उन्हेंने मेहनत करने का निर्णय किया।

संत फुटपाथ पर 20 से 25 किताबें लेकर सुबह से शाम तक बैठे रहते हैं और ग्राहकों को उम्मीद भरी नजरों से निहारते हैं। डिजिटल युग में किताबों के खरीदार तो कम हीं मिलते हैं, लेकिन इसकी बुजुर्गियत देखकर चंद किताबें बिक जाती हैं। धूप हो या बारिश या फिर आंधी हो या तूफान, आशियाने के नाम पर संतराज का सहारा फुटपाथ ही होता है।

हिस्ट्री से ग्रेजुएट संतराज अब और काम नहीं कर सकते, अपनों से नफरत ऐसी कि वो अब कभी घर लौटना भी नहीं चाहते। यही वजह है कि संतराज अब फुटपाथ पर ही मर जाना चाहते हैं, लेकिन बेटों की शक्ल देखना भी नहीं चाहते। बताते चले कि उनके तीन बेटों में से दो बड़े अधिकारी हैं।