राजद्रोह कानून की वैधता का सवाल बड़ी बेंच के गठन पर अटका, सुप्रीम कोर्ट 10 मई को करेगा विचार

नई दिल्ली : राजद्रोह पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को बनाए रखा था. लेकिन इस धारा की सीमा तय कर दी थी.

सुप्रीम कोर्ट मंगलवार, 10 मई को राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा है सबसे पहले इस बात पर विचार होगा कि क्या मामला 5 या 7 जजों की बेंच को भेजा जाए. पिछले साल कोर्ट ने कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए केंद्र से जवाब मांगा था. आज कोर्ट ने सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए सोमवार तक का समय दे दिया. केंद्र की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने संकेत दिया है कि सरकार कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ कदम उठा सकती है.

क्या है राजद्रोह कानून?

आईपीसी की धारा 124 A का मतलब है सेडिशन यानी कि राजद्रोह. अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है. कुछ मामलों में ये सज़ा उम्रकैद तक हो सकती है. यहां ये साफ करना ज़रूरी है कि सरकार का मतलब संवैधानिक तरीकों से बनी सरकार से है, न कि सत्ता में बैठी पार्टी या नेता.

सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला

राजद्रोह पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को बनाए रखा था. लेकिन इस धारा की सीमा तय कर दी थी. कोर्ट ने साफ किया था कि सिर्फ सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं माना जा सकता. जिस मामले में किसी भाषण या लेख का मकसद सीधे सीधे सरकार या देश के प्रति हिंसा भड़काना हो, उसे ही इस धारा के तहत अपराध माना जा सकता है. केदारनाथ मामले पर आया फैसला 5 जजों की बेंच का था. मामले में दाखिल नई याचिकाएं आज 3 जजों की बेंच के सामने लगी थीं. कोर्ट सुनवाई जारी रखने से पहले इस बात पर विचार करना चाहता है कि मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं.

दुरुपयोग पर कोर्ट के सवाल

सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा, छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला, सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एस जी बोम्बतकरे, एडिटर्स गिल्ड सहित 8 याचिकाएं लंबित हैं. पिछले साल 15 जुलाई को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि इस कानून का उपयोग अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं के खिलाफ किया था. आश्चर्य है कि आजादी के लगभग 75 साल बाद भी सरकार इस कानून को बनाए रखने की ज़रूरत समझती है.

आज क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और हिमा कोहली की बेंच ने यह मामला अंतिम सुनवाई के लिए लगाया था. कोर्ट ने पिछले हफ्ते सरकार से कहा था कि वह 1 मई तक जवाब दाखिल कर दे. लेकिन आज केंद्र के लिए पेश सॉलिसीटर जनरल ने जवाब के लिए कुछ और समय देने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि जवाब तैयार है, लेकिन उसे उच्च अधिकारियों की सहमति मिलने के बाद दाखिल किया जाएगा. मेहता ने यह भी कहा कि मामले में कुछ नई याचिकाएं भी दाखिल हुई हैं. जवाब से पहले उन्हें भी देखना जरूरी है. 3 जजों की बेंच इससे असंतुष्ट नज़र आई. चीफ जस्टिस ने कहा कि 9 महीने से मामला लंबित है. अब नई याचिकाओं का हवाला देकर सुनवाई टालना सही नहीं है.

बेंच के सदस्य जस्टिस सूर्य कांत ने यह सवाल उठाया कि लगभग सभी याचिकाओं में 1962 के केदारनाथ सिंह फैसले पर दोबारा विचार की मांग की गई है. ऐसे में 3 जजों की बेंच का इसे सुनना सही नहीं होगा. एक याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी चुनौती धारा 124A की वैधता को लेकर है. इसे 3 जज भी सुन सकते हैं. इस पर जजों ने कहा कि मंगलवार को सबसे पहले इसी बात पर विचार होगा कि क्या मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए. जजों ने यह भी कहा कि सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए अब और समय नहीं दिया जा सकता. इसलिए, कानून को बनाए रखने या उसमें संशोधन पर वह सोमवार तक जवाब दे दे.

हनुमान चालीसा विवाद की भी हुई चर्चा

मामले में केंद्र सरकार की तरफ से पेश होने की जगह एटॉर्नी जनरल की हैसियत से कोर्ट की सहायता कर रहे के के वेणुगोपाल ने कहा कि कानून का व्यापक दुरुपयोग हो रहा है. इसे रोकना ज़रूरी है. एटॉर्नी जनरल ने सांसद नवनीत कौर राणा का नाम लिए बिना उनसे जुड़े मामले का हवाला दिया. उन्होंने कोर्ट को बताया कि हाल ही में हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर हुए एक विवाद में भी धारा राजद्रोह की धारा लगा दी गई. वेणुगोपाल ने जजों को यह सलाह भी दी कि सुनवाई के दौरान धारा 124A के मूल उद्देश्य को भी ध्यान में रखा जाए. उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने से जुड़े मामलों में यह कानून लगाए जाने को सुप्रीम कोर्ट पहले सही करार दे चुका है.