बिहार एक बार फिर से गलत कारणों से चर्चा में है। हाल ही में सौ से ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो चुकी है और वजह बताई जा रही है चमकी बुखार। यह एक संक्रामक बुखार है जो अक्सर बदलते मौसम में बिहार में फैल जाता है। इस वर्ष हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। उत्तरी बिहार के जिले मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी, बेतिया और वैशाली सबसे ज्यादा प्रभावित है। जिसके लिए राज्य सरकार के गैर जिम्मेदाराना रवैये को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यही नहीं क्योंकि भाजपा और जदयू के गठबंधन की सरकार सत्ता में है और दोनों केंद्र में भी भागीदार हैं इसलिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों की सम्मिलित जिम्मेदारी है कि ऐसी नौबत ना आती। यही नहीं बिहार के स्वास्थ्य मंत्री भी भाजपा के कोटे से ही हैं। यह वाकया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन बाबू की छवि के लिए भी बहुत बड़ा कलंक है। एक छोटे अंतराल को छोड़कर पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं और अभी भी स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा इतना सक्षम नहीं हो पाया है कि ऐसी बीमारी से बच्चों को बचाया जा सके।
एक देश के लिए जहां मंगल और चंद्रमा पर जाने की योजनाएं बन रही हों, अंतरिक्ष में रिकार्ड सैटेलाइट लांच करके प्रतिमान स्थापित हो रहे हों, बुलेट ट्रेन चलने की योजना बनाई जा रही हो, दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था हो, सेना इतनी सक्षम हो कि दूसरे देशों में जाकर भी आतंकियों को नेस्तनाबूत करने का माद्दा रखती हो वहां पर इलाज के अभाव में बच्चों का काल के गाल में समा जाना एक राष्ट्र के तौर पर हमें बहुत शर्मिंदा करता है। इस बीमारी ने कई बार बिहार में कहर बरपाया हुआ है, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने कुछ वर्ष पहले भी बिहार का दौरा किया था और कहा था कि हम हर संभव प्रयास करेंगे ऐसी घटनाओं को पुनरावृति रोकने के लिए। 2012, 2014, में भी ऐसे ही बड़ी संख्या बच्चों की मृत्यु हुई थी लेकिन उसे सबक न लेते हुए सिर्फ कागजी खानापूर्ति करके सरकार ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली, जिसका खामियाजा आज भुगतना पड़ रहा है।
सोचने वाली बात है कि यह बुखार कैंसर जैसा लाइलाज नहीं है लेकिन इसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मृत्यु होना पूरे तंत्र की विफलता को दर्शाता है। आखिर हम उस क्षेत्र के लोगों को जागरूक क्यों नहीं कर पाए वक्त रहते हुए और इसके मूल कारणों में जाने की बजाय आज हम सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप में वक्त जाया कर रहे हैं।
क्या है चमकी बुखार ? कारण और लक्षण…
इसे चिकित्सा विज्ञान की भाषा में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम(AES) कहते हैं। आम भाषा में इसे चमकी बुखार कहा जाता है। कोई कह रहा है कि यह बुखार लीची खाने से होता है। यही नहीं तेज गर्मी, गरीबी और कुपोषण का भी इससे जबरदस्त कनेक्शन है। खाली पेट जब बच्चे दोपहर में धूप में खुले बदन घूमते हैं और पानी नहीं पीते तो शरीर गर्म हो जाता है। उनके शरीर में खून में शुगर की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे में यदि वे लीची खाते हैं तो उसमें मौजूद रसायन उनके खून की कम शुगर और ग्लूकोज के कारण ऐसे रिएक्शन करता है जिससे यह बुखार पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि अभी विशेषज्ञ इस पर एकमत नहीं हैं और इसपर शोध किया जा रहा है। संक्रमण के कारण अन्य लोगों को भी चपेट में लेता है। यह जल जनित कारणों से भी होने वाला बुखार है इसके लक्षणों की पहचान करके लक्षणों की पहचान करके तुरंत डॉक्टर के पास ले जाकर ही बचाव किया जा सकता है। इससे पीड़ित बच्चे को लगातार तेज बुखार रहता है, शरीर में ऐंठन होती है, चक्कर आता है और शरीर सुन्न हो जाता है।
कैसे हो बचाव ?
गर्मियों में फल और सब्जियां जल्दी खराब होते हैं इसलिए बच्चों को हमेशा ताजा खाना दें। उन्हें हाथ धुल कर खाना खाने के लिए बोलें। बच्चों को गंदगी से बिल्कुल दूर रहने के लिए बोलें, खासकर आवारा जानवरों से जो कि संक्रामक जीवाणुओं के वाहक होते हैं। साफ पानी पिएं। बच्चों को धूप में खेलने के लिए मना करें और उनके नाखून बढ़ने न दें।
बीमारी से पीड़ित होने पर मरीज के शरीर में पानी की कमी बहुत हो जाती है इसलिए उसे लिक्विड भरपूर मात्रा मे दें। शुगर की कमी को पूरा करने के लिए मीठा समय-समय पर देते रहें। क्योंकि अभी तक इसका कारगर इलाज अभी डॉक्टरों के पास नहीं है और इसमें मृत्यु दर बहुत ऊंची है इसलिए समय पर इसके लक्षणों की पहचान करके डॉक्टर के पास ले जाने में ही भलाई है।
भारी पड़ेगी स्वास्थ्य की अनदेखी
समाज और सरकार को मिलकर इसके प्रति लोगों में जागरुकता फैलानी पड़ेगी। इसे आम बुखार की तरह हल्के में लेने की गलती कितनी भारी पड़ सकती है यह हम देख ही रहे हैं। स्वच्छ पेय जल और भोजन के लिए राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को व्यापक स्तर पर जन जागरूकता अभियान तब तक चलाते रहना चाहिए जब तक यह मूल बातें उनके जेहन में खूब अच्छी तरह बैठ जाएं। यही नहीं लगातार ऐसी घटनाओं को न रोक पाने के लिए जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। ताकि हर बार ऐसी बहानेबाजी को टाला जा सके कि बदलते मौसम में तो ऐसी घटनाएं हो ही जाती हैं। जिस स्तर पर लापरवाही बरती जाए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसकी गंभीरता को कम करके देखना बहुत बड़ी भूल होगी। स्वास्थ्य को प्राथमिकता में न रखकर हम राष्ट्र का बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं।