बर्बरता के उस दृश्य पर आंखें फटी की फटी रह गई थी जब शोले में ठाकुर की हाथों को गब्बर ने काट डाला था। भारतीय सिनेमा के शिखर का प्रतिक बन गया था वो दृश्य। फिर भी हमने सिर्फ उसे एक कल्पना माना था।
कहने को आज हम उस दौर से बहुत आगे निकल आए लेकिन सच तो ये है। आज 27 साल बाद गब्बर भी है। रामगढ़ भी है, वो भी हकीकत में। आज सुशासन नाम के जुमले से नफरत हो गई है इसका अर्थ बदल देने का जी कर रहा है क्योंकि समस्तीपुर में जो घटा है उसने हमारी आत्मा तक को लहुलूहान कर दिया है। एक किसान का बेटा अब कभी कुदाल नहीं चला पाएगा। एक किसान का बेटा अभी नहीं खोद पाएगा मिट्टी। उसकी आंखें कभी नहीं देख पाएगी धान की पकी हुई बालियों का रंग।
15 अगस्त को लाल किले पर लहरता हुआ तिरंगा। 26 जनवरी की परेड। कुछ भी नहीं देख पाएगा। समस्तीपुर के इस नौजवान का नाम विकाश है। मुहावरा नहीं लिख रहे हैं हम। विकाश की दसों ऊंगलियों को काट डाला गया है। उसकी आंखों में तेजाब डाला गया है। उसे ईंट पत्थरों से पीटा गया है। विकाश अब कुछ नहीं देख सकता, सिर्फ महसूस कर सकता है। समस्तीपुर जिले के बिथान थाने का भलवारा गांव अब राष्ट्रीय शर्म के नक्शे पर उतर आया है।
विकाश यादव मोटरसाइकिल से अपने नानी के घर जा रहा था। रास्ते में गांव के ही दबंग शराब पी रहे थे। विकाश की गाड़ी खराब हो गई लेकिन उसे पता नहीं था जिस जगह पर गाड़ी खराब हुई है वहां कानून की धाराएं पनाह मांगती है। जिस आंगन के सामने वो गाड़ी सही कर रहा था वहां दानव बसते थे, गाड़ी की आवाज उसे अच्छी नहीं लगी। विकाश को गाली देने लगे। विकाश ने विरोध किया। उसके बाद पहले दबंगों ने उसे मारा, फिर जो हुआ, वो लिखते हुए कलेजा छलनी हो जाता है। उसकी दोनों हाथों की उंगलियां काट दी गई, उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया । ये इक्सवी सदी का विकास है। ये हमारे लोकतंत्र का विकास है।
ये हमारी सभ्यता का विकास है। ये हमारी संवेदना का विकास है, ये हमारी समझदारियों का विकास है। ये हमारी सोच का विकास है। ये हमारी सरकार का विकास है। ये हमारी संविधान का विकास है। इस विकास को क्या कहते हैं। आप कहेंगे, ये शर्मिंदगी का विकास है। पुलिस को पहुंचने में चार घंटे लगे। छह आरोपियों में से पांच भाग गए, एक को पकड़ लिया गया जबकि एक-एक चेहरे को गांव वाले पहचानते हैं।
कौन कहता है कानून है, संविधान है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश है। अगर है, तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद कैसे बिक रहा था खुलेआम तेजाब। बिहार की सरकार मुमकिन है मुआवजे का ऐलान करे लेकिन पीएमसीएच के स्ट्रेचर पर लेटे विकाश की आंखें अपने होने का मतलब पूछ रही है। मांग रही है अपनी दोनों हाथों की दसों ऊंगलियां। दो आंखें । समूची की समूची। ये बिहार का असली विकाश है, बिहार के विकास की दसों ऊंगलियां काट दी गई है। दोनों आंखों में तेजाब डाल दिया गया। ये जिंदगी अब मौत से भी बद्तर है और बिहार की सरकार कहती है विकास को देखों और हम देख रहे हैं विकाश को, विकाश चल नहीं पा रहा है।
विकाश देख नहीं पा रहा है। ऐसा विकास हमें नहीं चाहिए। आज हम नजर नहीं चुरा सकते, विकास के ऐसे दस्तूर से जिसने हमारी सभ्यता कि किताब पर कालिख की जिल्द मढ़ दी है। बिहार के विकाश का धुन आज बेईमान लगता है। अर्थ शब्दों के साथ फरेब करते नजर आते हैं। जैसे कोई जिंदा रहे तो क्या, मर जाए तो क्या। फिर भी दुनिया में जारी है, हिस्सेदारी की जंग, कटे हुए ऊंगलियों के साथ, सहमी हुई सांसों के साथ।