नई दिल्ली : देश के सुप्रीम कोर्ट ने बेशक ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर की मान्यता दे दी हो लेकिन राज्य सरकारें इस पर अमल नहीं कर रही हैं। लेकिन योग्य ट्रांसजेंडर अपनी मेहनत का लोहा मनवा रहे हैं। कुछ ऐसा ही आज किया है गंगा ने। राजस्थान की रहने वाली गंगा को राज्य की पुलिस में बहाली का आदेश हाईकोर्ट ने सरकार को दिया है। दरअसल, गंगा ने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल बनने के लिए सभी प्रकार की परीक्षा पास की लेकिन ट्रांसजेंडर होने की वजह से उनकी बहाली रोक दी गई। कुछ ऐसा ही हुआ था तमिलनाडु की ट्रांसजेंडर पृथिला यशिनी के साथ। पृथिला ने भी गंगा की तरह कानूनी लड़ाई लड़ी और आज वह सब इंस्पेक्टर हैं।
जानिए क्या है गंगा की कहानी
वर्ष 2013 में ट्रांसजेंडर गंगा ने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल पद के लिए आवेदन दिया था। सभी प्रकार की परीक्षओं में उत्रीण होने के बाद भी उनकी बहाली सिर्फ इसलिए रोक दी गई क्योंकि वह ट्रांसजेंडर थी। गंगा ने अपनी पीड़ा सभी छोटे-बड़े पुलिस महकमें के अधिकारी, नेता, मंत्री को बताई लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की।
मजबूर होकर गंगा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई में लगभग तीन वर्ष लग गए और आज यानि 14 नवंबर 2017 को उनकी जीत हुई। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से गंगा की नियुक्ति 6 सप्ताह के अन्दर करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की सोच भी नहीं सकती क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले ही ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर की मान्यता दे चुका है।
राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश मेहता ने इस मामले को ‘लैंगिक भेदभाव’ करार देते हुए छह सप्ताह के अंदर नियुक्ति देने का आदेश दिया था। गंगा राजस्थान के जालौर जिले के रानीवारा इलाके की रहने वाली हैं।
जानिए पृथिला यशिनी की कहानी
पृथिका यशिनी ने भी सरकार से कानूनी लड़ाई लड़कर पुलिस अधिकारी बनी हैं। पृथिका को कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद तमिलनाडु सरकार की ओर से पुलिस उप निरीक्षक पद पर नियुक्ति का आदेश मिला।
पृथिका यशिनी का जन्म एक लड़के के रूप में हुआ। माता-पिता ने इनका नाम प्रदीप कुमार रखा। लिंग परिवर्तन कराने के बाद प्रदीप कुमार पृथिका याशिनी बन गई। माता-पिता की समाज में बदनामी न हो इस कारण से पृथिका ने अपना घर छोड़ दिया था। पृथिका ने प्रदीप कुमार नाम से ही बीएससी (कंप्यूटर एप्लीकेशन) की।
पृथिला यशिनी का सपना पुलिस अफसर बनने का था। आवेदन पत्र में लिंग के कॉलम में केवल दो ही विकल्प थे महिला और पुरुष। उसने दूसरे कॉलम को चुना इस पर आवेदन निरस्त हो गया। इसके लिए उसे मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। नाम परिवर्तन की स्वीकृति और आवेदन पत्र में तीसरे लिंग ट्रांसजेंडर के कॉलम की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार पृथिका यशिनी सभी कानूनी बाधाएं पार करते हुए भारत की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस सब इंस्पेक्टर बन गई।