पूरे देश में आज यानी सोमवार (1 जुलाई 2024) से तीन नए आपराधिक कानून (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम) लागू हो गए हैं. इन्हें लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं. लोग इनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं.
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सीपी (ट्रेनिंग) छाया शर्मा ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में इन तीनों आपराधिक कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने इनसे जुड़े हर छोटे और बड़े पहलु पर बात की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या-क्या कहा.
1 जुलाई से आने वाले मामलों पर ही लागू होगा नया कानून
छाया शर्मा ने बताया कि 1 जुलाई से पहले के जो भी मामले हैं उन्हें IPC के तहत ही निपटाया जाएगा और उनके लिए सीआरपीसी प्रभावी होगी, लेकिन 1 जुलाई से दर्ज होने वाले मामलों पर बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धाराएं लागू होंगी. इसी तरह 1 जुलाई से शुरू होने वाली जांच की प्रक्रिया भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के नियमों का पालन करेगी.
महिलाओं के लिए नए कानून में क्या?
नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की धाराओं पर स्पेशल सीपी छाया शर्मा ने कहा, “पहली बार महिलाओं से जुड़े सभी कानूनों को एक ही चैप्टर में रखा गया है. इसलिए, आईओ (जांच अधिकारी) के लिए उन्हें पढ़ना बहुत आसान हो जाता है. दूसरी बात ये है कि पहले ई-FIR वैकल्पिक थी. कुछ राज्यों ने इसे किया, कुछ ने नहीं लेकिन अब ई-FIR आपके घर से की जा सकती है. हालांकि 2-3 दिन बाद आपको जाकर पुलिस से संपर्क करना होगा या अगर पुलिस आपके पास आती है तो आपको एक साइन्ड बयान देना होगा. कुल मिलाकर ई-एफआईआर का एक विकल्प है, लेकिन इसे कानून के अंदर एक क़ानून के तहत लाया गया है. यह कानून पहले से नहीं था.”
उन्होंने कहा, “नए कानून में एक और अच्छी बात यह है कि अगर महिला पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहती है और उसका बयान घर पर दर्ज किया जाए, तो वह यह भी कह सकती है कि वह इसे लिखित में नहीं देना चाहती है और उसके बयान की वीडियोग्राफी की जाए. इसके अलावा और भी बहुत सी धाराओं में बदलाव किया गया है. पहले वॉयरिज्म के लिए IPC की धारा केवल पुरुषों पर ही लागू होती थी, लेकिन अब अगर कोई महिला किसी अन्य महिला के साथ भी ताक-झांक करती है या उसके कपड़े उतारती है, तो उसे भी ऐसी ही सजा मिलेगी.”
अब FIR की कॉपी के लिए नहीं पड़ेगा भटकना
छाया शर्मा ने बताया कि नए कानून के बाद अब पीड़ित को अपनी FIR की कॉपी पाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता नहीं पड़ेगा. अब, पीड़ित को FIR की कॉपी मुहैया कराना अनिवार्य कर दिया गया है. चेन ऑफ कस्टडी और डिजिटल साक्ष्य की रखरखाव क्षमता का चार्जशीट में उचित रूप से उल्लेख करना होगा. इसे तभी स्वीकार किया जाएगा जब इसका उल्लेख (चार्जशीट में) किया जाएगा. अब चलताऊ चार्जशीट दायर नहीं की जा सकती. पुलिस को हर चीज का उचित रूप से उल्लेख करना होगा.
हिरासत के संबंध में पुलिस को मिलेगी ये राहत
स्पेशल सीपी छाया शर्मा का कहना है कि पुलिस हिरासत और डिटेंशन (नजरबंदी) के संबंध में भी बदलाव किए गए हैं. अब 30 या 60 दिनों की अवधि के अंदर आरोपी की पुलिस हिरासत फिर से प्राप्त कर सकते हैं. हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि मामला किस तरह का है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप एक आरोपी को पकड़ते हैं और उसे दूसरे आरोपी के साथ जिरह करनी होती है, तो वे उपलब्ध नहीं होते क्योंकि आपको पुलिस हिरासत नहीं मिलती. इस बदलाव के साथ, आप फिर से उनकी पुलिस हिरासत प्राप्त कर सकते हैं.”