पुलिस ने बताया कि सभी घयलों को बेहतर ईलाज हेतु एम.जे.के. अस्पताल भेज दिया गया है घयलों में मुख्य रूप से जोखु पासवान, लालमुनी देवी, साधु राय, निर्मला देवी, सुरेन्द्र महतो आदी की हालत गंभीर है। सूचना पाकर वन संरक्षक संतोष तिवारी, वन प्रमंडल पदाधिकारी कमलजीत सिह, व पुलिस अधिक्षक सुनिल कुमार नायक आदी पदाधिकारीगण उक्त गांव में कैम्प कर बाघ को कब्जे में लेने हेतु तरह – तरह के हथकन्डे अपनाए अंत में पटना से ट्रैकुलाइजर गन टीम को बुलाया गया टीम द्वारा गन से निशाना साध फिर दो सूई दे बाघ को अपने कब्जे में लिया गया तब तक दिनभर हाईटेक ड्रामा चलता रहा।
यहां सोचने वाली बात यह है कि इतने बडे़ बाघ परियोजना के पास ट्रकुलाइजर गन नहीं है जो कि सरकार और विभाग पर सवालिया निसान खरा करता है। दूसरी कि बाघ को पकड़ने में 14 घंटे क्यों लगे तीसरा कि जब टाईगर प्रोजेक्ट यहां है तो ट्रैकुलाइजर गन और एक्सपर्ट टीम पटना में क्यों रहता है? वहीं अगर सूत्रों कि माने तो 2010 के बाद अभी तक बाघो कि गणना नहीं हुई है जबकी आकड़ो पर गौर करें तो वर्ष 09-10 में एक करोड़ पैतालिस लाख रू,वर्ष 11-12 में 1 करोड़ 89 लाख रू ,वर्ष 11-12 में 3 करोड़ 4 लाख रू और वर्ष 2013 जनवरी तक 3 करोड़ 24 लाख रूपया बाघो कि सुरक्षा पर खर्च किये जा चुके हैं।