वित्तीय स्थिरता तथा विकास परिषद (एफएसडीसी) की 11वीं बैठक के बाद वितमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘निवेश चक्र को पटरी पर लाने के लिए व्यापार माहौल में सुधार तथा कारोबार की लागत कम करने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘मौजूदा वित्त तथा आर्थिक संकेतकों पर चर्चा हुई। साथ ही सरकार की आगामी नीतियों के संदर्भ में नियामकों के पास अगर कोई सुझाव हैं तो उसे साझा करने पर भी बात हुई।’ यह बातचीत अगले महीने बजट पेश करने से पहले विभिन्न क्षेत्र के नियामकों के साथ विचार-विमर्श का हिस्सा था।
देश की आर्थिक वृद्धि दर लगातार दूसरे साल 5 प्रतिशत से कम रही। वर्ष 2013-14 में यह 4.7 प्रतिशत रही जिसका कारण विनिर्माण तथा खनन उत्पादन में कमी है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत रही। अरुण जेटली ने कहा, ‘नई सरकार से उच्च राजनीतिक अपेक्षाएं हैं और अब अर्थव्यवस्था के समक्ष लंबित मसलों के समाधान का अवसर हैं। अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता हासिल करने के लिए सभी नियामकों के समन्वित रुख की जरूरत है।’
इरडा के चेयरमैन टीएस विजयन, वायदा बाजार आयोग के प्रमुख रमेश अभिषेक तथा पीएफआरडीए के कार्यवाहक चेयरमैन आरवी वर्मा के अलावा वित सचिव अरविंद मायाराम, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव जीएस संधु समेत वित्त मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। वित्तीय निगरानी के मुद्दे पर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि वह राजकोषीय मजबूती के क्षेत्र में निगरानी में शिथिलता के खिलाफ है।
पीजे नायक समिति की बैंक में कामकाज पर जारी हाल की रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा, ‘इन विषयों पर हमें अपना दिमाग लगाने के लिए आपको इंतजार करना होगा।’ नायक समिति ने अन्य बातों के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम करने की सिफारिश की है। बैठक के दौरान सभी वित्तीय नियामकों ने आगामी बजट और अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के बारे में अपने सुझाव दिए।
एफएसडीसी ने राजकोषीय घाटे तथा चालू खाते के घाटे में कमी तथा विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण वृहत आर्थिक मानकों में सुधारों को भी रेखांकित किया। हालांकि, बैठक में यह माना गया कि आर्थिक वृद्धि में सुधार लाने, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने और घाटे को नियंत्रण में रखने तथा आधारभूत क्षेत्र की अड़चनों को दूर करने में अभी काफी लंबा सफर तय किया जाना है।