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आज 7 साल से बिना वेतन के ही शिक्षा की रोशनी जला रहे हैं

schoolमुखिया और जाँच टीम की मिलीभगत को दर्शा रहा,चूंकि संबंधित हेड मास्टर ने अपने हस्ताक्षर को जाली करार देते हुए कानूनी करवाई की मांग भी की है, इसके बावजूद जालसाजों पर कानूनी कारवाई का न होना जिला शिक्षा पदाधिकारी ऑफिस के कारनामों को उजागर करती है के पूर्वी चम्पारण के जिला शिक्षा पदाधिकारी ऑफिस गरीब और ईमानदारों के लिए किस तरह दुश्मन की भुमिका निभाती तो दूसरी तरफ अमीर और पैसा वालों के लिए तरह दोस्त की भूमिका में खड़े रहते है?

पूर्वी चम्पारण। आज 7 साल से बिना वेतन के ही शिक्षा की रोशनी जला रहे हैं। बिना वेतन के ही गुरूजी बच्चों को शिक्षा देते रहे। यह हाल सुनील कुमार पासवान नामक पंचायत शिक्षक की है। इस शिक्षक की बहाली पूर्वी चम्पारण जिले के फेन्हारा प्रखंड में स्थित बारा परसौनी पंचायत में हुआ था। सबसे पहले अन्य गुरूओं की तरह पारा शिक्षक के रूप में सुनील कुमार पासवान की बहाली साल 2003 में हुई थी।

तब सरकार ने सभी पारा शिक्षकों को पंचायत शिक्षक के रूप में पदोन्नत कर दी गयी। इससे सभी शिक्षक खुश हो गये। अनुसूचित जाति के गरीब सुनील कुमार पासवान के ऊपर तीन साल के बाद सरकारी वज्रपात साल 2006 में गिरा। उनको बताया गया कि तीसरा पुनर्नियोजन नहीं होने के कारण आपकी बहाली अवैध कर कर दी गयी है। इसके खिलाफत गुरूजी हो गये। आज 7 साल से बिना वेतन के ही शिक्षा की रोशनी जला रहे हैं।

अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुशासन डोलने लगाः
जब दलित सुनील कुमार पासवान नामक पंचायत शिक्षक को वेतन लेने की बारी आ गयी । तब नौकरशाहों के द्वारा बहाली को ही अवैध करार दिया गया। इन हरकतों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुसशासन डोलने लगा है। सुशासन के बदले कुशासन आ गया है। इस तरह के कुकृत्य से सुशासन सरकार कटघरे में आ गयी है। कटघरे में ले जाने वाले शिक्षा मंत्री पी.के.शाही के नौकरशाह हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अजीबोगरीब निर्णय ले लिया है। जिसके कारण गुरूजी को बगावत करने पर उतारना पड़ा।

तब शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जवाब देना ही होगा:
यहां बताते चले कि जो भी शिक्षक बहाल हुए थे। सब शिक्षक पारा शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे थे। सरकार ने अपने एक आदेश के जरिये उन्हें पंचायत शिक्षक मान चुकी है। ऐसी हालात में सुनील कुमार पासवान और अन्य बाकी पंचायत शिक्षक किस तरह अवैध घोषित किये जा रहे हैं? अगर शिक्षा विभाग के अधिकारी अवैध बहाली मान रहे हैं तो उनको सिद्ध करना होगा कि किस कानून के तहत अवैध कर रहे हैं। अपने ही सरकार के आदेश को झुठलाकर पंचायत शिक्षकों को अवैध घोषित करना। इसका शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जवाब देना ही होगा। अगर शिक्षा विभाग के अधिकारी गला बचाने के लिए कहेंगे कि इन पंचायत शिक्षकों को बहुत पहले ही हटा दिया गया था तो उन्हें तो साबित करना ही पड़ेगा। कि बुनियादी के बल पर हटाया गया और उसका आधार क्या था?

पूर्व और वर्तमान प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के प्रतिवेदन ने साबित कर दियाः
यहां बताते चले कि पूर्व और वर्तमान प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के प्रतिवेदन ने साबित कर दिया है कि 2003 से 2012 तक पंचायत शिक्षक सुनील कुमार पासवान का कार्य संतोषजनक रहा है। इसकी पुष्टि स्कूल के अध्यापक ने भी कर दी है। तत्कालीन जिला पदाधिकारी ने एक जांच दल गठित की थी। यही प्रतिवेदन उच्चस्तरीय जांच दल प्रतिवेदन पर सवालिया निशान लगाने के साथ ही दल के अन्य लोगों को भी जांच के दायरे में लाती है। अगर मामले की जांच निगरानी विभाग से कारवाई जाएगी तो दल के लोगों को कई कारणों से जेल जाने की भी नौबत तक आ सकती है। पहली वजह तो यह है कि जब डीएम ने जांच दल गठित की तो  प्रतिवेदन डीएम को ही आगे की कार्रवाई करने के लिए सौंपा जाना था। मगर डीएम साहब को इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। आखिर क्यों नेही नहीं किया गया ?

मामले की जांच कर रहे बिहार मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठने वाला है। इस संबंध में गहन रूप से जानकार लोगों का कहना है कि इसलिए प्रतिवेदन डीएम को नहीं सौंपी गयी क्योंकि जांच दल को इस बात का डर था कि जांच में ऐसा कुछ भी ठोस सबूत ही नहीं मिल जाए। जिससे सुनील कुमार पासवान और बाकी पंचायत शिक्षक को हटाया जा सके, मगर मुखिया के चुनाव 2006 की घोषणा हो जाने के कारण आचार संहिता अवधि में मुखिया पुत्र और उनकी भतीजी की बहाली रद्द होने की पूरा खतरा बन गयी थी।

उच्चस्तरीय जांच दल की मिलीभगत के पहले से ही थीः
जानकार बताते हैं कि उच्चस्तरीय जांच दल की मिलीभगत के पहले से ही थी। इसी वजह से मुखिया और उसके रिश्तेदारों को बचाने के लिए रिपोर्ट को बदा दिया गया। अब जबकि मामले की जांच बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग कर रहा है। जिला स्तरीय जांच रिपोर्ट का समाप्त हो चुका है। अब जबकि बिहार मानवाधिकार आयोग के आदेश के आलोक में हो रहे जांच के बाद अपना गला फंसता देख वरीय पदाधिकारियों ने मुखिया के रिश्तेदारों की बहालियों को रद्द कर दिया है।

अब सवाल यहाँ ये पैदा होता है के जब पूर्व  पूर्व प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी ने बहाली को गलत साबित कर चुकी थी उस समय बहाली क्यों नहीं रद्द की गई ? जिस अवैध बहाली को 2007 और उससे पहले रद्द होनी चाहिए थी वह 2012 में क्यों हो रही ? अब जबके बहाली रद्द हो चुकी ऐसी हालत में मुखिया पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हो रही यहाँ बताते चले की उच्चस्तरीय जाँच टीम को और कुछ न मिला तो श्री सुनील कुमार पासवान को मुखिया के जरिये स्कूल के प्रधानाचार्य के जाली हस्ताक्षर को आधार बनाकर हटाने सही साबित करना भी मुखिया और जाँच टीम की मिलीभगत को दर्शा रहा, चूंकि संबंधित हेड मास्टर ने अपने हस्ताक्षर को जाली करार देते हुए कानूनी करवाई की मांग भी की है इसके बावजूद जालसाजों पर कानूनी कारवाई का न होना जिला शिक्षा पदाधिकारी ऑफिस के कारनामों को उजागर करती है के पूर्वी चम्पारण के जिला शिक्षा पदाधिकारी ऑफिस गरीब और ईमानदारों के लिए किस तरह दुश्मन की भुमिका निभाती तो दूसरी तरफ अमीर और पैसा वालों के लिए किस तरह दोस्त की भूमिका में खड़े रहते है?