नई दिल्ली : आयुष मंत्रालय आयुर्वेद और अन्य देशी चिकित्सा पद्धतियों के करीब दो हजार फार्मूलों को खंगाल रहा है ताकि इनसे कोविड के उपचार या बचाव की कोई ठोस औषध तैयार हो सके। आयुष मंत्रालय ने इसके लिए एक टास्क फोर्स गठित की है। टास्क फोर्स को दो हजार से अधिक दवाओं पर शोध के प्रस्ताव मिल चुके हैं जिनकी छानबीन की जा रही है।
आयुष मंत्रालय के सलाहकार डा. मनोज नेसारी ने हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि हम चाहते हैं कि देशी चिकित्सा पद्धतियों पर गहराई से अध्ययन किया जाए। आज पूरी दुनिया कोविड का उपचार तलाश करने में लगी है तो हम भी अपने परंपरागत चिकित्सा ज्ञान का इस्तेमाल करें। मंत्रालय तीन तरह से देशी चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल कोविड के खिलाफ करना चाहता है। एक बचाव करने वाली दवाएं, दूसरे इलाज तथा तीसरे ऐसे उत्पाद जो खाद्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किये जा सकें और कोविड प्रबंधन में उपयोगी साबित हों। बता दें कि मंत्रालय पहले ही उन आयुष फार्मूलों के इस्तेमाल को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर चुका है जो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को बढ़ाते हैं।
बहु दवा फार्मूला : इसी कड़ी में एमिल फार्मा ने टास्क फोर्स के चेयरमैन से 13 जड़ी-बूटियों से बने आयुर्वेदिक फार्मूले फीफाट्रोल को कोविड रोगियों पर आजमाने के लिए क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने का अनुरोध किया है। सुदर्शन वटी, संजीवनी वटी, गोदांती भस्म, त्रिभुवन कीर्ति रस तथा मत्युंजय रस से निर्मित इस फार्मूले में माइकोबियल संक्रमण के खिलाफ लड़ने की क्षमता है। ऐसी ही एक दवा को ड्रग कंट्रोलर ने विगत दिवस क्लिनिकल ट्रायल की इजाजत दी है। इसके अलावा इसमें आठ अन्य बूटियों के भी अंश शामिल हैं। एम्स भोपाल भी इस दवा पर अध्ययन कर रहा है। चार फार्मूलों पर अध्ययन को मंजूरी-नेसारी ने बताया कि गिलोय, अश्वगंधा, मुलेठी से बने तीन फार्मूलों एवं आयुष मंत्रालय द्वारा विकसित एक दवा आयुष 64 को भी कोविड पर आजमाने का फैसला किया है।
मार्डन वैज्ञानिकों की मदद
सरकार ने इन फार्मूलों पर शोध के लिए इंटर डिसिप्लेनरी कमेटी बनाई है ताकि उसमें मार्डन मेडिसिन के चिकित्सा विशेषज्ञों की मदद लेकर इन फार्मूलों को आधुनिक चिकित्सा के मानकों पर भी परखा जा सके। नेसारी ने कहा कि चयन किये गये फार्मूलों पर अध्ययन का जिम्मा विभिन्न शोध संस्थानों को सौंपा जाएगा।