सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 2008 के बाद पुलिस विभाग में हुई आउट ऑफ़ टर्न प्रोनतियों को अवैध करार दिया है। हाईकोर्ट का तर्क है कि उत्तर प्रदेश कांस्टेबल और हेड कॉन्स्टेबल सर्विस रूल के प्रभाव में आने के बाद इसका कोई प्रावधान नहीं रह गया है। कोर्ट ने अवैध रूप से दी गई प्रोन्नति को वापस लेने का भी निर्देश दिया है, मगर यह भी कहा है कि ऐसा करने से पहले पक्षो को सुनवाई का पूरा मौका दिया जाय।
हाईकोर्ट ने यह फैसला प्रेम कुमार उपाध्याय एवं अन्य याचिकाओं पर सुनाया है। याचिकाकर्ता के वकील विजय गौतम के अनुसार पराक्रम दिखाने वाले पुलिस कर्मियों और अधिकारीयों को आउट ऑफ़ टर्न प्रोन्नति पाने का अधिकार है। मगर कोर्ट ने इसे नकारते हुए कहा कि पुलिस सेवा नियमावली के लागू होने के बाद ऐसी व्यवस्था नहीं है। दरअसल कोर्ट के सामने ये रखा गया कि 2 जनवरी 98 और 29 दिसंबर 98 के शासनादेशों से आउट ऑफ़ टर्न प्रोन्नति दिए जाते रहे है। इसके तहत विभाग में दो प्रतिशत पुलिसकर्मियों को आउट ऑफ़ टर्न प्रोन्नति का प्रावधान था और इसके लिए शर्ते भी तय की गयी थी।
मगर कोर्ट का कहना है कि जब सर्विस रूल्स बने है तो उसमे भी इसका जिक्र होना चाहिए था मगर सर्विस रूल्स में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसलिए शासनादेश सर्विस रूल्स पर प्रभावी नहीं होगा। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से कहा है कि प्रोन्नति पाये उन सभी का पता लगाए और निर्णय ले ताकि वे अधिक समय तक इसका अनुचित लाभ लेने से रोका जा सके। साथ ही हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया है कि इसकी जांच के लिए एक कमिटी का गठन जल्द करे।
गठित की गयी कमिटी ये देखेगी और अपना रिपोर्ट छै महीने में देगी कि पुलिस सेवा नियमावली आने के बाद कितने पुलिस अधिकारीयों को आउट ऑफ़ टर्न प्रोनति दी गयी है। उधर इस पुरे मसाले पर कोई भी अधिकारी बोलने से गुरेज कर रहे है।