नौकरशाही को सियासी दबाव से मुक्त करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि नौकरसाह मौखिक आदेशों , सुझावों या प्रस्तावों पर काम नहीं करेंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने आधिकारियों के मनमाने तबादलों को गलत बताते हुए सरकार से नौकरशाहों को एक पद पर निश्चित कार्यकाल देने और उनके सिविल सर्विस बोर्ड गठित करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति पीसी घोष की पीठ ने 83 पूर्व नोकरशाहों की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। याचिका में नौरशाही को राजनीतिक दबाव की मांग की गई थी।
कोर्ट ने नौकरशाही को दबाव मुक्त ओर प्रभावी बनाने पर आई विभिन्न रिपोर्टों और खासकर संथनाम समित की सिफारिशों पर गौर करते हुए कहा कि देखा गया है कि राजनीतिक प्रभाव या सत्ताधारी व्यक्ति के प्रतिनिधियों के कारण नौकरशाहों में ईमानदारी और जवाबदेही का स्तर गिरा।
कोर्ट के अनुसार आल इंडिया सर्विस रूल का नियम 3 (3) (3) विशेष तौर पर कहता है कि वरिष्ठ की ओर से दिए गए सारे आदेश सामान्यतः लिखित होने चाहिए। जहां अपरिहार्य परिस्थितियों में मौखिक आदेश पर कार्रवाई करनी पड़े, अधिकारी के लिए उसकी लिखित पुष्टि करना जरूरी है। शीर्ष अदालत ने नौकरशाहों के कामकाज की जवाबदेही तय करने और संस्था की साख बनाए रखने के लिए आदेशों का लिखित रिकार्ड जरूरी बताया।
उसके अनुसार सूचना कानून में कामकाज की जानकारी उपलब्ध कराने और पारदर्शिता कायम रखने के लिए भी यह आवश्यक है। कार्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखित आदेशों के बारे में आल इंडिया सर्विस (कंडक्ट) रूल्स 1968 3 (3) की तर्ज पर तीन महीने में निर्देश जारी करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने मनमाने तबादलों पर रोक लगाने के लिए सरकारों को एक पद पर निश्चित कार्यकाल तय करने का आदेश देते हुए कहा कि तीन महीने में इस बाबत निर्देश जारी करने होंगे। शीर्ष न्यायलय ने नौकरशाहों के तबादले, नियुक्त और अनुशासनात्मक कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को सिविल सर्विस बोर्ड गठित करने के लिए भी तीन महीने का ही समय दिया है।
यह आदेश ऐसे समय आया है जब हरियाणा के आइएएस अशोक खेमका की कथित प्रताड़ना का मामला चर्चा में है। इसके पहले यूपी कैडर की आइएएस दुर्गा शक्ति नागपाल भी इसी कारण से चर्चा में रही थी। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें राजनीतिक व अन्य कारणों के चलते-जल्दी तबादले करती है।
सरकारी नीतियों को लागू करने और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक पद पर न्यूनतम निश्चित कार्यकाल जरूरी है। नौकरशाहों के बारे में यह आदेश काफी कुछ वैसा ही है, जैसा पुलिस अधिकारियों के बारे में सात साल पहले दिया था। पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट ने सात दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन उन पर अमल अभी तक नहीं हो सका है।