चुनाव में उतरे इन सभी प्रत्याशियों का कहना है कि सुबह से दोपहर तक उनका समय चुनाव प्रचार और इसी से जुड़े कामों में निकल जाता है लेकिन शाम के वक्त वे अपना पूरा समय मरीजों के इलाज में लगते हैं ।
इसी के साथ वाम पंथी दल ने पश्चिम बंगाल में पांच डॉक्टरों को मैदान में उतारा है तो इस मामले में तृणमूल भी भला कैसे पीछे रह सकती थी, उसने भी पांच ही डॉक्टरों को टिकट दिया है। वहीं, इस बार बंगाल में कड़ी चुनौति पेश कर रही भाजपा ने यहां से दो मेडिकल प्रोफेशनल को मैदान में उतारा है।
कोलकाता से चंद किलोमीटर दूर बारासात से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरीं काकोली घोष दस्तीदार पेशे से महिला रोग विशेषज्ञ हैं और उनके मुकाबिल लेफ्ट फ्रंट ने मुर्तजा हुसैन हैं जो खुद भी एक फिजिशियन हैं।
वहीं, झारग्राम की बात करें तो यहां से तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं उमा सोरेन और उनके खिलाफ मैदान में हैं पुलिन बिहारी बास्के। बास्के भी एक मशहूर डॉक्टर हैं और एक सामाजिक संस्था के अस्पताल में अपनी सेवाएं देते रहे हैं।
वीरभूम से सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कामरे इलाही भी काफी लोकिप्रिय चेहरा हैं और रोचक यह कि वह भी चिकित्सक ही हैं। वैसे इलाही के बारे में खास बात यह भी है कि वह पूर्व में विधानसभा के दो चुनाव जीत चुके हैं और विधानसभा के सदस्य बनने का गौरव उन्हें हासिल है।
ऎसे ही हुगली से तृणमूल प्रत्याशी हैं रत्ना डे नाग और एक अन्य प्रत्याशी मुमताज संघमिता भी महिला रोग विशेषज्ञ हैं। इसी तरह बोलपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे लेफ्ट प्रत्याशी रामचंद्र भी डॉक्टर हैं।
चाहे तृणमूल की बात करें या माकपा की हर दल को इनसे प्रेम है। अब देखना यह है की जो जनता की जान की हिफाजत करते है वो देश सियासत को सँभालने में कितने कारगर साबित हो पाएंगे।