पश्चिमी देशों के कई बड़े नेता जल्द ही भारत आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने वाले हैं। इनकी नजर भारत के रक्षा सुधारों से मिलने वाले खरबों डॉलर के रक्षा सौदे है। वहीं फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन से कई वरिष्ठ नेता और अधिकारी अगले 10 दिनों में भारत आ रहे हैं। दरअसल मोदी सरकार की योजना सोवियत युग के पुराने हथियारों से भरे भारतीय शस्त्रागार का तेजी से नवीनीकरण करना है और इन देशों की नजर इसी रक्षा सौदे पर है।
प्रधानमंत्री की योजना भारतीय सैन्य क्षमता को बढ़ाना और दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक इस देश को एक बड़े हथियार निर्माता में बदलने की है। इसके लिए वह रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत देने जैसे उपायों पर विचार कर रही है। किंग्स कॉलेज, लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रोफेसर हर्ष पंत कहते हैं, ‘सभी देश मानते हैं कि भारतीय रक्षा बाजार बदलने वाला है और ऐसे में वह दूसरों से आगे रहते हुए अपना दावा रखना चाहते हैं।’
इस कड़ी में सबसे पहले फ्रांस के विदेश मंत्री लॉरेंट फैबियस राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे, जिनके एजेंडे में रुकी पड़ी राफेल लड़ाकू विमान की डील को आगे बढ़ाना होगा। भारत ने फ्रांस की दासॉल्ट एविएशन द्वारा बनाए 126 राफेल फाइटर जेट्स को 15 बिलियन डॉलर के सौदे में खरीदने का फैसला किया था। फिलहाल यह सौदा कुछ कारणों से अटका पड़ा है। सोमवार को यहां पहुंच रहे फैबियस मोदी के अलावा उनके सबसे ताकतवर मंत्री अरुण जेटली से भी मिलेंगे, जो कि वित्त के साथ रक्षा मंत्रालय भी संभाल रहे हैं।
इसके बाद अगले सप्ताह अमेरिका के सीनेटर जॉन मैक्केन भी भारत का दौरा करेंगे, जिनके प्रांत एरिजोना में बोइंग और रेथिऑन जैसी हथियार निर्माता कंपनियां स्थित हैं। मैक्कैन ने इससे पहले गुरुवार को सीनेट में भी कहा था कि अमेरिका को भारत के आर्थिक और सामरिक उभार को सहयोग देना चाहिए। वहीं जुलाई के दूसरे हफ्ते में ब्रिटेन के विदेशमंत्री विलियम हेग और वित्तमंत्री जॉर्ज ऑसबोर्न के भी भारत आने की संभावना है। ब्रिटेन ने भी अपने लड़ाकू विमान टाइफून को भारत को बेचने की कोशिश की थी, हालांकि वह इस रेस में राफेल से पीछे रह गई थी।
इस यात्रा में अन्य मुद्दों के अलावा ब्रिटेन की कोशिश होगी कि फ्रांस से राफेल डील के पूरा न हो पाने की स्थिति में वह रेस में वापस आ जाए। वहीं दूसरी तरफ रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन पहले ही भारत का दौरा कर चुके हैं। रूस एक साल पहले तक भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है। हालांकि रूस के पाकिस्तान को एमआई-35 अटैक हेलिकॉप्टर्स बेचने की योजना को लेकर भारत अपनी नाराजगी जता चुका है।
भारत ने पिछले साल हथियारों के आयात पर 6 बिलियन डॉलर (करीब 360 अरब रुपये) खर्च किए थे। मोदी सरकार पहले ही रक्षा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत देने के संकेत दे चुकी है। हालांकि पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी सहित कई लोगों ने इसका विरोध करते हुए इसे खतरनाक और आत्मघाती कदम भी बताया है।