जैसे कभी माना जाता था कि जौहर करने से स्त्रियां सीधे स्वर्ग जाती हैं किन्तु आज ऐसा करना अपराध हैं। लकड़ी के हल में फाल लगा हल जोतना पाप माना जाता था। लेकिन आज टैªक्टर से धरती का सीना चीरना कोई पाप नहीं बल्कि हरीत क्रांती का सहयोग माना जाता हैं। वेद और उपनिषद की माने तो राग और द्वेष पाप का मूल कारण हैं। इन्द्रियों और मन में इनका निवास हैं। आत्मा या परमात्मा का सानिध्य प्राप्त कर लेने पर पाप के इस मूल से छुटकारा मिल जाता हैं।
गोस्वामी तुलसी दास कि माने तो असत्य के समान कोई पाप नहीं और सत्य के समान कोई पुण्य नहीं। वहीं दूसरे स्थल पर उन्होंने कहा हैं कि काम ,क्रोध और लोभ तीन ऐसे प्रबल दुष्ट हैं जो किसी के मन को पलभर में क्षुब्ध कर पाप करवाता हैं। काम से लोभ होता हैं विघ्न से क्रोध होता हैं। लोभ कि बढ़त और अधिक संचय कि हालत में मद हो जाता हैं, और जो मद से ग्रसित हो व्यक्ति उसे पापपरायण होना स्वभाविक हैं।
तुलसी दास जी ने पाप से मुक्ति का एक मात्र उपाय बताया हैं कि सत्संग ,हरीकथा और ईश्वर की शरण के बिना मोह का नाश असम्भव हैं जो कि कलयुग में प्रयाग, चित्रकुट, काशी, कैलाश, अवध आदि स्थलो का मानसिक यात्रा कर व संत शरण में जा कर ही इस पंचभौतिक शरीर के रहते ही व्यक्ति पापों से मुक्त हो धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष चारो पुरूषार्थ प्रप्त कर लेते हैं प्रभु का नाम किसी एक पाप को नहीं बल्कि पापों के समूह को नाश करने वाला हैं चाहे वह जिस भाव में लिया जाये ।