UP की राजनीति में इन दिनों ‘सरकार से बड़ा संगठन’ का नारा खूब गूंज रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने इस नारे को बुलंद किया। लेकिन इसकी झलक यूपी विधानसभा के मानसून सत्र में देखने को मिली जब योगी सरकार ने यूपी नजूल संपत्ति विधेयक 2024 विधानसभा में पेश किया. इस विधेयक को लेकर विपक्ष ने विरोध तो जताया ही, साथ ही बीजेपी विधायकों ने भी विरोध में अपने सुर बुलंद कर दिए. बीजेपी विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह हर्षवर्धन वाजपेयी से लेकर जनसत्ता दाल के राजा भैया ने विरोध जताया. इतना ही नहीं बीजेपी की सहयोगी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विधेयक को गैर जरूरी बताते हुए इसे वापस लेने की बात कर दी.
हालांकि, विरोध के बीच यूपी नजूल संपत्ति विधेयक विधानसभा में तो पास हो गया लेकिन, विधान परिशन्ड में बीजेपी एमएलसी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने इसे लटका दिया. जैसे ही विधान परिषद् में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने विधेयक को पेश किया बीजेपी एमएलसी भूपेंद्र चौधरी ने इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग कर दी. जिसके बाद सभापति ने इसे प्रवर समिति को भेज दिया, जो दो महीने में अपना रिपोर्ट पेश करेगी. जिसके बाद यूपी के सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि संगठन के सामने योगी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है.
क्या है नजूल संपत्ति विधेयक ?
दरअसल, योगी सरकार ने नजूल सम्पत्ति विधेयक में प्रावधान किया है कि अगर किसी ने नजूल की संपत्ति का पट्टा पर लिया है और उसने पट्टे का किराये का नियमित रूप से भुगतान किया है. साथ ही किसिस भी तरह के अनुबंध का उल्लंघन नहीं हुआ है तो उसका नवीनीकरण स्वतः हो जाएगा. ऐसे लोगों को 30 साल के लिए पट्टे का नवीनीकरण किया जाएगा. अगर पट्टे का समय पूरा हो चुका है तो वो संपत्ति सरकार के पास आ जाएगी. वहीं अगर पट्टा अवधि के खत्म होने के बाद नजूल संपत्ति का इस्तेमाल हो रहा है तो पट्टे के किराया का निर्धारण डीएम द्वारा किया जाएगा. बस इसी बात को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के विधायकों का विरोध हैं. उनका आरोप है कि डीएम अपने लोगों को इसमें तरजीह देंगे।