इन दिनों राजधानी की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है। डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी, पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था का अभाव ऊपर से मरीजों की भारी भीड़ ऐसे में सबकुछ सुचारू कहां से हो सकता है। अव्यवस्था का आलम यह है कि अब दिल्ली सरकार के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जीबी पंत में भी इलाज कराना आसान नहीं रहा।
एम्स, सफदरजंग, लोहिया जैसे अस्पतालों की तरह यहां भी दूसरे अस्पतालों से रेफर किए गए केस आते हैं। मरीज सिर्फ दिल्ली के ही नहीं बल्कि पूरे देश से पहुंचते हैं। नई व्यवस्था में नंबर लगवाने के लिए लंबी जद्दोजहद से गुजरना पड़ेंगा। दो से तीन माह बाद नंबर आया तो पर्ची बनवाने के लिए लंबी लाइन को पार करना होगा। इस बीच यदि हड़ताल हो गई तो फिर आपकी सेहत भगवान के ही भरोसे है। क्योंकि हर एक दो महीने में हड़ताल की परंपरा बनती जा रही है।
यही हाल कमोबेश दिल्ली के हर छोटे-बड़े अस्पतालों का है। कम से कम राष्ट्रीय राजधानी में तो इस तरह की स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि हर जगह से हार कर मरीज बड़ी आशा के साथ यहां पहुँचते हैं। ऐसे हालात के लिए कौन जिम्मेदार है ये तय करना जरूरी है।
दुनिया भर में प्रति दस हजार की जनसंख्या पर उपलब्ध डाक्टरोंए नर्सों की संख्या को बताने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ने भारत को उन 57 देशों की सूची में रखा है जिनमें प्रति दस हजार की जनसंख्या पर उपलब्ध स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बेहद मामूली है।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अस्पताल मरीजों के लिए है पर उसके बारे में सोचने वाला कोई नहीं। व्यवस्था, सुरक्षा, स्टाफ की कमी तो गिनाई जाती है पर मरीजों की बेहतरी के लिए गंभीरता नहीं दिखाई देती। इन कमियों का खमियाजा मरीजों की ही चुकाना पड़ता है। विडंबना है कि लंबे समय से इस तरह के हालात का सामना करने को दिल्लीवासी मजबूर हैं। संबंधित विभाग व सरकार आधारभूत सुविधाओं को मुहैया कराने में विफल रहे हैं। समस्या किसी भी स्तर पर हो पर स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रखना
अस्पलातों की बदहाली देखकर ये समझा जा सकता है कि भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र पर्याप्त और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के मामले में गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है। आर्थिकए, सामाजिक सूचकांकों पर आम तौर पर बेहतर और अग्रणी माने जाने वाले राज्यों की हालत भी निराश करने वाली है। ऐसे में ये सवाल उठता है कि चिकित्सा सेवाओं के विस्तार और उनकी उपलब्धता को बढ़ाने के मामले में चूक कहां हो रही है।