हाफ मैराथन में दूसरा स्थान पाने वाली डीएम ने अपना मैडल बहराइच के युवाओं को समर्पित करते हुए कहा देश की युवाओं में बहुत ताकत है। वह ठान ले तो कुछ भी करके दिखा सकता है। अपनी इस भागीदारी से किंजल सिंह ने इंटरनेशनल लेवल की प्रतियोगिता भी क्वालीफाई कर लिया है। सूत्रो की माने तो आईएएस किंजल सिंह मैराथन में भागीदारी के लिए काफी समय से प्रयास कर रही थी। इसके लिए वे अपनी आवास पर नियमित प्रैक्टिस भी करती थी। पहले फिटनेस क़वालीफाई करते हुए मुम्बई हाफ मैराथन में भाग लिया। किंजल सिंह ने इक्कीस किलोमीटर की दौड़ दो घंटा चौतीस मिनट अठ्ठावन सेकेण्ड में पूरी कर दूसरा स्थान प्राप्त किया है।
किंजल सिंह वैसे तो वर्त्तमान में एक आईएएस ऑफिसर है और इन दिनों वो बहराइच की डीएम है। मगर हम आपको डीएम किनजाल सिंह के घर के परदे के पीछे की कहानी बताते है, जिसकी वजह से किंजल आज यहाँ तक पहुंची है। बहराइच की डीएम किंजल सिंह को कुदरत ने भी एक मेडल दिया है और वो है एक इन्साफ का जो किंजल सिंह को 31 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने दिया। 12 मार्च 1983 कि एक शाम किंजल के पिता डीएसपी गोंडा की हत्या कर दी गयी थी। जिसमे कई पुलिस वालो के साथ तात्कालीन एसओ आर पी सरोज शामिल थे। करीब 31 साल बाद ५ अप्रैल 2013 को दोपहर एक बजकर 35 मिनट पर आरबी सरोज सहित तीन पुलिसकर्मियों को फांसी व पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
दरअसल किंजल सिंह के डीएसपी पिता के पी सिंह को सूचना मिली थी कि 12 मार्च 1982 की रात कुछ क्रिमिनल माधवपुर गांव के राम बरन सिंह के यहाँ तेरहवी में जा रहे है जहा उनकी एक बैठक होने वाली है। जिसके बाद केपी सिंह कुछ पुलिस वालो और तत्कालीन कैडिया के एसओ आर बी सरोज के साथ रेड डाला था। जहा उनको आर बी सरोज ने गोली मार दी थी। जिससे उनकी मृत्यु अस्पताल में हुई थी। तब किंजल सिंह पांच महीने की थी, और उनकी छोटी बहन का जन्म भी नहीं हुआ था।
पति केपी सिंह की मौत के बाद किंजल सिंह की माँ विभा सिंह ने हार नहीं मानी और जब लोकल पुलिस ने इसे मुड़भेड़ दिखाकर फ़ाइल बंद कर दी। तो मृतक केपी सिंह की पत्नी ने इस केस को सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी। तब सीबीआई ने साल 1984 में इस केस को पुनः खोलकर जांच शुरू की। मगर इस बीच साल 2004 में किंजल सिंह की माँ विभा सिंह एक बीमारी से चल बसी। तब उसके बाद किंजल सिंह ने इस केस को लड़ा और साल २०१३ को वो दिन आया जब सीबीआई की कोर्ट ने एक स्वक्ष न्याय सुनाया। और किंजल कोर्ट परिसर से बाहर आकर फफक कर रो पड़ी थी। और मीडिया से कहा था कि आज उनके पापा के हत्यारो को सही सजा मिल गयी।
लोकल एडमिनिस्ट्रेशन में बहराइच के लोगो का भरोसा जीत चुकी किंजल सिंह खेलकूद के साथ सोशल वर्क में भी आगे है। अभी कुछ महीने पहले बहराइच की एक महिला ने एक गांव में शौचालय बनाने के लिए अपनी जमीन दान में दे दी थी जो खबर कुछ दिनों तक मीडिया की सुर्खी भी बनी थी। मगर उस सौचालय को बनवाने का पूरा श्रेय किंजल सिंह को ही जाता है क्योकि महिला के जमीन दान देने के बाद किंजल सिंह ने ही सर्कार से लेकर आम जनता को इस सौचालय बनवाने के लिए मनवाया था। जब बहराइच की उस महिला मनोरानी को लखनऊ में सुलभ शौचालय फाउंडेशन ने सम्मान देने का एलान किया तो किंजल सिंह उस मौके पर खुद आने की इक्षा जाहिर करते हुए। मनोरानी को सम्मानित किया था।
इस दौरान बहराइच की डीएम किंजल सिंह ने कहा था कि बहराइच एक छोटा सा जिला है। जिसमे एक बहुत ही छोटा गांव है वन ग्राम। जहा का रहने वाला हर गावंवासी अपने जमीन के मालिकाना हक़ के लिए बरसो से लड़ाई लड़ रहे है। उसमे मनोरानी यादव जिनका उस जमीन पर भले ही कानूनी हक़ ना हो। मगर उस जमीन के लिए लड़ाई लड़ते हुए इनके पिता और पति चल बसे वो जमीन से इनका एक अलग ही लगाव है। उन्होंने अपनी जमीन को समाज की हक़ में दान दे दिया जो अतुलनीय है। मनोरानी यादव ने महिलाओ का सम्मान बढ़ाया है। वन ग्राम एक पुरूष प्रधान गांव है, मगर पुरुषों को पीछे छोड़ती हुई मनोरानी यादव ने जो किया वो काबिले तारीफ़ है।