दुनिया का पहला बच्चा जिसे जन्म दिया दो माँ और एक पिता ने

न्यूयॉर्क: अमेरिका के डॉक्टर जॉन झेंग ने तीन पेरेंट्स से बच्चे को जन्म देने वाली एक नई तकनीक का उपयोग किया है। विदित हो कि इस शिशु की दो जैविक माताएं हैं और एक पिता।

डॉक्टरों ने जॉर्डन के एक दम्पति पर यह प्रयोग किया और इस तकनीक के चलते यह सुनि‍श्चिेत किया कि बच्चे का जो डीएनए विकसित हों, उसमें किसी प्रकार की कोई आनुवांशिक गड़बड़ी न हो। इस तकनीक को एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। इस तकनीक के तहत में भ्रूण को विकसित करने में तीन पालकों के डीएनए का इस्तेमाल किया गया।

न्यू साइंटिस्ट मैगजीन में मंगलवार को प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि मां की बीमारी बच्चे में न जाए। डॉक्टरों का कहना है कि महिला के जीन में ली सिंड्रोम डिसऑर्डर था जो कि मां से बच्चे में आ जाता है। इस तरह की बीमारी होने पर बच्चा दो-तीन वर्ष बाद ही मर जाता है।

इस बीमारी की जानकारी मिलने के बाद महिला के पति सबसे पहले न्यूयॉर्क के न्यू फर्टिलिटी सेंटर के डॉक्टर जॉन झेंग से मिले। वे चाहते थे कि उन्हें एक बच्चा हो, वह आनुवांशिक तौर पर उनका हो लेकिन उसमें यह बीमारी न आए। चूंकि अमेरिका में तीन पालकों से बच्चे को जन्म देने वाली किसी तकनीक को लेकर कोई कानून नहीं है, इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

बाद में उन्हें बताया गया कि इस समस्या का निदान प्रो न्यूक्लियर ट्रांसफर नाम की एक तकनीक है जिसे ब्रिटेन में कानूनी मान्यता हासिल है। इसमें दो एम्ब्रायो (भ्रूणों) को तोड़ा जाता है लेकिन मुस्लिम होने की वजह से दम्पत्ति ने इस तकनीक का इस्तेमाल करना भी मंजूर नहीं किया।

इसके बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नया ही प्रयोग किया। इस नए प्रयोग के तहत वैज्ञानकों ने पहले चरण में खराब माइटोकॉन्ड्रिया वाले मां के एक (अंडाणु) से न्यूक्लियस (केंद्रक) को निकालकर सुरक्षित कर लिया। और दूसरे स्टेप में उन्होंने डोनर मां की सेहतमंद माइटोकॉन्ड्रिया वाली सेल के न्यूक्लियस को हटा दिया।

तीसरे चरण में डोनर मां के एग में असली मां के न्यूक्लियस को डाल दिया। इस तरह तैयार हुए नए अंडाणु एग को पिता के स्पर्म से फर्टिलाइज किया गया, जिससे बच्चे का जन्म हुआ। इस तरह से वैज्ञारनिकों को आनुकवांशिक बीमारियों पर काबू पाने का नया तरीका खोज निकाला।

जेनेटिक बीमारी रोकी जा सकती है : विशेषज्ञों का मानना है कि इससे जेनेटिक बीमारियों को बच्चों में जाने से रोका जा सकता है। हालांकि तीन लोगों के डीएनए से बच्चे पैदा करने की शुरुआत 1990 के दशक में हो गई थी लेकिन इस बार जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, वह पूरी तरह अलग है। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन की इस तकनीक की कानूनी रूप से कड़ी जांच से परखा जाए।

क्या हैली सिंड्रोम ?
यह नर्वस सिस्टम का डिसऑर्डर  है और इस बीमारी के सिम्टम्स बच्चे में एक साल की उम्र से नजर आने लगते हैं। इसमें बच्चे का शारीरिक विकास नहीं होता और बच्चा ज्यादा चल फिर नहीं पाता है। मात्र दो-तीन साल की उम्र में उसकी मौत हो जाती है।